प्रेस-विज्ञप्ति
योग आयोग का महत्वपूर्ण लक्ष्य है जीवनशैली में परिवर्तन – संजय अग्रवाल
कर्म में ऐसी पवित्रता हो कि वही हमारा धर्म बन जाये।
छ.ग. योग आयोग के बिलासपुर संभाग के मास्टर ट्रेनर्स के स्नेह मिलन का आयोजन ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा सेवाकेन्द्र में किया गया
‘‘योग को केवल शारीरिक अभ्यास तक ही संकुचित न रखें। यदि तन पवित्र है तो जरूरी नहीं कि मन भी पवित्र होगा किन्तु यदि मन पवित्र होगा तब तन स्वतः ही पवित्र होगा। हमारे जीवन का मर्म इतना प्रगाढ़ हो जाए कि वही हमारा कर्म बन जाए और कर्म में ऐसी पवित्रता आ जाये कि वही हमारा धर्म बन जाये क्योंकि गीता में भी लिखा गया है कि कर्म की कुषलता ही योग है। यहां हर व्यक्ति षिष्य है जब वह अपना ज्ञान दूसरों को सुनाता है तो वह गुरू भी है। हमारे मन का भाव अर्थात् मर्म यही होना चाहिये कि इस संसार में कोई पीड़ित या दुखी है तो उनकी सेवा करूं और उनके दुखों का निवारण करके उनके भीतर नव चेतना का उदय कर सकूं- यही जीवन का लक्ष्य बन जाये। हम योगी बनें या न बनें लेकिन समाज या देष के लिए उपयोगी जरूर बनें। जब तक हम अपने कर्म से स्वयं को गौरवान्वित अनुभव नहीं कर पा रहे हैं तो समझ लीजियेगा कि उड़ान अभी बाकी है। इसलिए हम व्यक्ति की नहीं व्यक्तित्व की और चित्र की नहीं चरित्र की पूजा करते हैं क्योंकि व्यक्ति या चित्र की पूजा करने वाला धोखा खा सकता है लेकिन व्यक्तित्व या चरित्र की पूजा करने वाला कभी भी धोखा नहीं खा सकता।
ये बातें छ.ग. योग आयोग के अध्यक्ष, कैबिनेट मंत्री आदरणीय भ्राता संजय अग्रवाल जी ने ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा सेवाकेन्द्र में आयोजित स्नेह मिलन कार्यक्रम में उपस्थित बिलासपुर संभाग के मास्टर योग प्रषिक्षकों को संबोधित करते हुए कही।
हमारा जीवन सादा हो और विचार ऊंचे हों – ब्र.कु. शान्तनु भाई
इस अवसर पर माउण्ट आबू से पधारे ब्रह्माकुमारीज़ के मीडिया प्रभाग के मुख्यालय संयोजक आदरणीय भ्राता ब्रह्माकुमार शांतनु जी ने शुभ प्रेरणायें देते हुए कहा कि मनुष्य के जीवन में सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए योग के सभी पहलुओं की ओर ध्यान देने की जरूरत है। आज लगभग 75 प्रतिषत से अधिक बीमारियों का कारण मन के कमजोर संकल्प या मानसिक तनाव है। जीवन में कोई भी समस्या, कोई भी परिस्थिति बाहरी नहीं है, इसके पीछे मुख्य कारण हमारी ही सोच का फर्क है। आज कितना भी बुद्धिमान इंसान हो, कितने भी बड़े ओहदे पर हो, सभी को तनाव है। हम दूसरों की बुराई देखने में, करने में, दूसरों को दोष देने में ही लगे रहते हैं। हम अपने संबंधियों को, अपने कार्यव्यवहार में आने वाले व्यक्तियों को दोष देने लगते हैं लेकिन वास्तव में इसका कारण हम हैं, हमारे देखने का नजरिया है। वास्तव में हम योगियों का जीवन सादा, मांसाहार से मुक्त, व्यसनमुक्त और ऊंचे विचारों वाले होने चाहिए। इसके लिए शारीरिक योग के साथ मन के सषक्तिकरण की भी आवष्यकता है। हमें रोज सुबह 4 से 5 बजे तक उठ जाना चाहिये और कम से कम 10 मिनट अच्छे संकल्पों, जैसे सभी सुखी हों, शान्त हों, रोगमुक्त हों, पूरे विष्व का कल्याण हो आदि श्रेष्ठ विचारों के माध्यम से ध्यान करना चाहिये और यही राजयोग का अभ्यास है। इसमें हमारा कनेक्षन परमात्मा से जुड़ता है और हमें उसी प्रकार ऊर्जा मिलती है जिस प्रकार पॉवर हाउस से कनेक्ट होने पर विद्युत उपकरणों को पॉवर मिलती है।
छ.ग. योग आयोग की सदस्य ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी जी ने कहा कि योग आयोग एक परिवार की तरह है। इस परिवार के अधिकतर सदस्य युवा हैं और युवा के अंदर अपार शक्तियां हैं चाहे तो वे इसे निर्माणकारी दिषा में लगा सकते हैं या फिर विध्वंसकारी दिषा में। योग आयोग का उद्देष्य ही है कि हर व्यक्ति को का्रेधमुक्त बनाना, उनमें निर्माणकारी ऊर्जा का संचार कर उनकी शक्तियों को सही दिषा में उपयोग करना। यह कोई एक दिन की प्रक्रिया नहीं है इसके लिए सतत अभ्यास की आवष्यकता है। आयोग को ऊंचाई पर ले जाने के लिए समर्पण भाव, समाने की शक्ति व एकता की शक्ति की बहुत आवष्यकता है क्योंकि संगठन को चलाने के लिए इन्हीं गुणों व शक्तियों की आवष्यकता है।
कार्यक्रम के अंत में सभी ने मां भारती की आरती की और ब्रह्माभोजन ग्रहण किया।
भ्राता सम्पादक महोदय,
दैनिक………………………..
बिलासपुर (छ.ग.)