प्रेस-विज्ञप्ति
तन व मन के साथ धन व संबंधों की स्वच्छता जरूरी – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी
श्रेष्ठ जीवन निर्माण में स्वच्छता आवष्यक
रेल्वे इंग्लिष मीडियम स्कूल में स्वच्छता पखवाड़ा पर ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी ने बच्चों को दी सीख
‘‘स्वच्छता एक या दो दिन की न हो अपितु जीवन काल में निरंतर चलती रहे। स्वच्छता सबको अपनी ओर आकर्षित करती है। एक होती है तन की स्वच्छता – शारीरिक स्वच्छता के लिए हम रोज नहाते हैं, स्वच्छ कपड़े पहनते हैं, अपने आसपास के क्षेत्र को साफ सुथरा रखते हैं। इसके साथ ही मन की स्वच्छता का ख्याल भी हमें रखना होगा, यदि हमारे मन में क्रोध, वैर, ईर्ष्या, घृणा जैसे नकारात्मक विचार भरे हुए हैं तो इन बातों को हमें अच्छी तरह समझ लेना चाहिये कि ये बातें हमारी एकाग्रता की शक्ति को नष्ट कर देंगी। अपने जीवन मे निरंतर मन रूपी दर्पण में देखते रहे कि मैंने जो भी अपने जीवन का लक्ष्य बनाया है मैं उस दिशा की ओर अग्रसर हॅूं। तन व मन के साथ संबंधों व धन का भी शुद्ध होना आवष्यक है। यदि हम अपने पैरेन्ट्स की बातों को नहीं मानते या उनसे बुरा व्यवहार करते हैं तो ये स्वच्छता नहीं हुई। संबंधो की स्वच्छता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण अभिभावक और संतान का है। हमारे माता-पिता कैसे अपना सारा जीवन अपने बच्चों की खुषी में खुश रहकर बीता देते हैं। अपनी इच्छाआें व जरूरतों से पहले हमारा ख्याल रखते हैं परन्तु क्या हम उनके इस त्याग और तपस्या का वास्तविक परिणाम उन्हें दे रहे हैं। जिस मात-पिता ने अपना पूरा जीवन हमारे नाम कर दिया हो, उनकी सेवा में यदि हम अपना सारा जीवन भी लगा दें तब भी कम है। अपने संबंधो को स्नेह, प्रेम की ड़ोर से सदैव बांधे रखें। यदि हमारे बोल कड़वे हैं, दूसरों के प्रति हमारी भावना अच्छी नहीं तो वह संबंधों की स्वच्छता नहीं है। हमें अपने पड़ोसी, दोस्त, षिक्षक एवं अन्य संबंधों को दिल से निभाना होगा तब ही संबंध मधुर होंगे।’’
उक्त विचार रेल्वे इंग्लिष मीडियम स्कूल में ‘स्वच्छता अभियान’ को लेकर आयोजित कार्यक्रम में स्कूल के सभी बच्चों को संबोधित करते हुए ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्र.कु. मंजू दीदी जी ने दिये। आपने बच्चों को स्वावलम्बी बनने की षिक्षा देते हुए कहा कि अपने छोटे-छोटे कार्य खुद ही कर लेने चाहिये, जैसे अपना स्टडी टेबल साफ-सुथरे रखना, अपने मोजे धोना, सुबह उठकर बिस्तर ठीक करना आदि। टीवी देखते हुए भोजन करना भी स्वच्छता नहीं है, इससे तन व मन की शक्ति खत्म होती है। निश्चित रूप से हमारे बड़े हमें बहुत अच्छे से प्रोत्साहित करते हैं इसलिए बहुत अच्छे से पढ़े, पर इसके साथ-साथ भावनात्मक क्षमताओं को भी अपने जीवन में स्थान दे क्योकि भावनात्मक क्षमताएं ही हमें आगे बढ़ाती है। कहते ह,ै कि जैसा हम सोचते है वैसे विचार हमारे जीवन में उतर जाते है। यदि संकल्प श्रेष्ठ हों तो हमें पता ही नहीं चलता और हमारा जीवन स्वतः ही स्वच्छ हो जाता है क्योंकि संकल्प से बोल, बोल से कर्म और कर्म से संस्कार का निर्माण होता है।
आपने किषोर अवस्था के बच्चों को विषेष रूप से कहा कि इस उम्र में हम आइने के सम्मुख बार-बार जाते हैं इसलिए हमें आइने के पास अच्छे विचारों की सूची एवं जो हमारा लक्ष्य है उससे संबंधित आदर्ष व्यक्ति का चित्र लगा लेना चाहिये। इससे हमारे लक्ष्य के प्रति सदा जागरूकता बनी रहेगी। कार्यक्रम के दौरान प्रिंसीपल भ्राता के.के. मिश्रा जी, ब्र.कु. ईष्वरी बहन, गौरी बहन, समस्त स्कूल स्टाफ एवं सभी बच्चे उपस्थित थे।
भ्राता सम्पादक महोदय,
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बिलासपुर (छ.ग.)