Rajrishi
ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा में शांति व सद्भाव के साथ मनायी गई आध्यात्मिक होली
टिकरापारा, बिलासपुर : ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा में होली का पर्व बहुत ही शांति व सद्भावना के साथ मनाया गया। इस अवसर पर उपस्थित सभी साधकों को आत्मिक स्मृति का तिलक लगाया गया व मुख भी मीठा कराया गया। इससे पूर्व भगवान को भोग स्वीकार कराया गया व सत्संग में होली के अवसर पर उच्चारे गए परमात्म महावाक्य सुनाए गए। सेवाकेन्द्र के अतिरिक्त साधकों ने ऑनलाइन भी कार्यक्रम का लाभ लिया।
सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी जी ने परमात्म महावाक्य सुनाते हुए कहा कि होली का उत्सव उमंग उत्साह में रहने का यादगार है। यदि हम प्रतिदिन सत्संग करते हैं तो हम सभी के लिए रोज ही होली है क्योंकि सत्संग का अर्थ ही है भगवान का सच्चा-सच्चा संग। इस संग से मन में उमंग व उत्साह बना रहता है। मन को ऐसे ही सदा उमंग-उत्साह में रखना ही होली का वास्तविक उद्देश्य है। शिवबाबा ज्ञान मुरली में कहते हैं कि समटाइम व समथिंग का शब्द छोड़कर ‘‘सदा’’ शब्द याद रखें।
दीदी ने आगे कहा कि हम कहते हैं कि जब हमें गुस्सा, तनाव, आलस्य या अलबेलापन आता है तो मुख से निकल जाता है कि ‘‘ये तो मेरा संस्कार ही ऐसा है… मेरे पुराने संस्कार ही ऐसे हैं…’’ जबकि हमें स्वप्न में भी ऐसा नहीं सोचना चाहिए। क्योंकि वास्तविकता ये है कि आत्मा के मूल संस्कार सतोगुणी हैं। भगवान सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम, पवित्रता के सागर हैं और उनकी संतान होने की वजह से हम भी उन गुणों के स्वरूप हैं। परमपिता परमात्मा भी हम सभी को अपने उत्तराधिकारी के रूप में देखना चाहते हैं। हम अपने जीवन में उन चीजों का रोना न रोएं जो हमारे पास नहीं है बल्कि उन चीजों का शुक्रियां मानें जो भगवान ने आपको दी हैं, हर पल परमात्मा का गुणगान करें।
होली शब्द हमें यह स्मृति दिलाता है कि जो भी पुरानी बातें हैं उन्हें हो-ली अर्थात् बीती कर दें, भूला दें क्योंकि दुख, दर्द या समस्याओं से अधिक परेशानी तो उन्हें मन में रखने से होती है। इसलिए बीती को भूला कर सबको मन ही मन क्षमा कर दें। दूसरा अर्थ है मैं परमात्मा की बन गई अर्थात् हो ली और अंग्रेजी में होली अर्थात् पवित्रता का संदेश देता है।