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Rajrishi

माउण्ट आबू से पधारे वरिष्ठ इंजीनियर ब्रह्माकुमार हरिहर मुखर्जी ने कहा – कर्मों के अनुसार फिक्स होती है हमारी भूमिका

 

 

सादर प्रकाशनार्थ
प्रेस विज्ञप्ति
माउण्ट आबू से पधारे वरिष्ठ इंजीनियर ब्रह्माकुमार हरिहर मुखर्जी ने कहा –
कर्मों के अनुसार फिक्स होती है हमारी भूमिका
साइंटिफिक विश्लेषण कर सृष्टि चक्र के खगोलीय रहस्य समझाया
सृष्टि नाटक के चार सिद्धांत व आठ विशेषताएं भी बताईं

बिलासपुर टिकरापारा  :- आत्मा की तीन गति होती है सद्गति, दुर्गति और गति अर्थात मुक्ति! ऐसे ही पृथ्वी की भी तीन गति होती है दिन रात की गति अर्थात् 24 घंटे की जिसमें पृथ्वी अपने अक्ष पर एक चक्र पूरा करती है। दूसरा है एक वर्ष अर्थात् 365 दिन की गति जिसमें पृथ्वी सूर्य का एक चक्र पूरा करती है इसे ऋतू चक्र भी कहते हैं। तीसरा है कल्प की गति जिसे पृथ्वी 5000 वर्ष में पूरा करती है। चूंकि सूर्य का आकार पृथ्वी से 109 गुना अधिक है इसलिए यदि मान लिया कि एक चक्र में पृथ्वी सूर्य को थोड़ा सा बांधती है सूर्य को पूरी तरह बाँधने में पांच हजार वर्ष लग जाते हैं। इस प्रकार सृष्टि नाटक हर कल्प में हुबहू पुनरावृत्त होता है। जिस प्रकार प्रत्येक खेल का नियम होता है वैसे ही सृष्टि नाटक का भी नियम है।
उक्त बातें ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा सेवाकेन्द्र में माउण्ट आबू से पधारे वरिष्ठ इंजीनियर भ्राता ब्रह्माकुमार हरिहर मुखर्जी भाई ने कही। भाईजी ने सृष्टि नाटक के चार सिद्धांत और आठ विशेषताएं बताई। पहला सिद्धांत – ‘जो करेगा सो पायेगा’ अर्थात् पुरूषार्थ पहले है। दूसरा यह कि ‘जैसा करेगा वैसा पाएगा’। तीसरा ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ क्योंकि कल्याणकारी संगमयुग का समय बहुत कम है इसमें ही जो भी पुण्य जमा करना है वो कर लें। इसके लिए हमें हिम्मत का एक कदम बढ़ाना होगा तो अनुभव होगा कि परमात्मा की मदद के हजार कदम स्वतः हमारी ओर बढ़ जाते हैं। चौथा सिद्धांत है जो हमने अभी चांस लिया वही हर कल्प में रिपीट होगा। इसी लिए जितना हो सके अपनी भूमिका अच्छे से अच्छा फिक्स कर लें।
हर घटना है कल्याणकारी…
इसी क्रम में भाईजी ने सृष्टि नाटक अर्थात् ड्रामा की आठ विशेषताएं बताईं। ये ड्रामा बिल्कुल एक्यूरेट है अर्थात् जो भी होता है कोई नई बात नहीं है। घड़ी की टिक-टिक कहती है कि सब ठीक-ठीक। ये ड्रामा कल्याणकारी है क्योंकि जो भी घटना घटित होती है उसमें अच्छाई ही छिपी होती है भले ही वह वर्तमान में बुरी महसूस होती है। यह न्यायकारी भी है अर्थात् हमारे कर्मों का हिसाब-किताब चुक्तू होना ही है चाहे इस जन्म में चाहे दूसरे जन्म में। अपने कर्मों के अनुसार हम अपना रोल स्वयं ही फिक्स करते हैं। जिस प्रकार 5 वाट और 1000 वाट के बल्ब का प्रकाश अलग-अलग होता है वैसे ही इस ड्रामा में सबकी योग्यता, समझ और क्षमता अलग-अलग है इसलिए हर आत्मा निर्दोष है।
ड्रामा का हर सेकण्ड यूनिक है…
हरेक आत्मा अपने समय का तीन-चौथाई भाग सुख मिलता है चाहे वह एक जन्म का समय हो चाहे 84 जन्म का। ड्रामा की एक विशेषता यह भी है कि पूरे 5000 वर्ष के समय में जितने भी सेकण्ड हैं वह सब यूनिक हैं, अलग-अलग हैं, एक-दूसरे से मैच नहीं करते। अंतिम विशेषता यह है कि यह ड्रामा वन-वे ट्रैफिक की तरह है जिसमें शुरूआत से आत्माएं आती रहती हैं, बीच में खेल छोड़कर जा नहीं सकती। जब इस नाटक के डायरेक्टर स्वयं भगवान इस धरती पर आते हैं तब ही सबको एक साथ वापस ले जाते हैं। स्मृति-विस्मृति अर्थात् भूल-भूलैया का खेल है।
तीन तरह से होगी इस सृष्टि नाटक की समाप्ति
इस खेल की समाप्ति तीन प्रकार से होगी- प्राकृतिक आपदाओं के द्वारा, न्यूक्लियर युद्ध से और गृह-युद्ध से। जब 6 व 9 अगस्त 1945 में हिरोशिमा व नागासाकी में न्यूक्लियर विस्फोट हुआ था उसका बहुत भयानक परिणाम था। जबकि आज जो अनेक देशों के पास न्यूक्लियर बॉम्ब्स हैं वे उससे कई गुना अधिक शक्तिशाली हैं। प्राकृतिक आपदाएं तो हम सभी देख ही रहे हैं चाहे वह भूकम्प हों, सुनामी जैसे समुद्री तूफान हों, बाढ़ हों, चक्रवात हो चाहे ज्वालामुखी का फटना हो। सभी विनाशकारी ही हैं। इसलिए इनके प्रकोप से बचने के लिए हमें पांचों तत्वों को सकारात्मक प्रकम्पन्न जिसे सकाश कहते हैं, देना चाहिए।
हरिहर मुखर्जी भाई के आगमन पर सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी जी ने बलौदा से ऑनलाइन स्वागत किया। अनेक साधकों ने इस क्लास का ऑनलाइन लाभ लिया। सभी इस क्लास से बहुत प्रभावित हुए और प्रशंसा भी की।

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