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Rajrishi

विकारों पर विजय का प्रतीक है विजयादषमी पर्व- ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी

विकारों पर विजय का प्रतीक है विजयादषमी पर्व- ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी
विजयादषमी का पर्व असुरत्व पर देवत्व के विजय का प्रतीक 
चैतन्य देवियों की झांकी में बताया गया नवरात्रि व दषहरा का आध्यात्मिक रहस्य
भिलाई सेवाकेन्द्र प्रभारी राजयोगिनी ब्र.कु. आषा दीदी जी ने की षिरकत
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राजकिषोरनगर, 11 अक्टूबर- कहते हैं कि जब षिव सोये तो षक्तियां भी सो गईं और जब षिव जागे तो षक्तियां भी जाग गयीं। कलियुग अंत में जब परमात्मा षिव धरती पर अवतरित होकर नारी के अंदर की सोई हुई षक्तियों को जागृत करते हैं। और जब षक्तियां जागृत हो जाती हैं तो विकारों पर सहज ही विजय प्राप्त कर लेती है। आज के संदर्भ में कहें तो परमात्मा संगमयुग पर हमें ऐसी षक्ति देते हैं कि नारी के 5 विकार और नर के 5 विकार जब समाप्त हो जाये तब ही सच्ची दषहरा होती है।
उक्त बातें चैतन्य देवियों की झांकी देखने एकत्रित हुए भक्तों को नवरात्रि एवं विजयादषमी का आध्यात्मिक रहस्य बताते हुए टिकरापारा सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी जी ने कही। उन्होंने बताया कि रावण का अर्थ है रूलाने वाला या दुख देने वाला। जब कोई इंसान मरता है तो उसको एक बार जलाते हैं। लेकिन आखिर ये रावण कैसा है जिसको हर साल जलाते हैं फिर भी वह मरता नहीं है। रावण का अंत तब होगा जब इंसान के अंदर देवत्व का जागरण होगा। तो सोये हुए देवत्व को जगायें तो रावण खत्म हो जायेगा अर्थात् दुख की दुनिया ही समाप्त हो जायेगी।
देवियों की षक्तियों से समानता बताते हुए आपने कहा जब हम परमात्मा षिव से संबंध जोड़ते हैं तब हमें सबसे पहली षक्ति मिलती है विस्तार को संकीर्ण करने की षक्ति जिसका प्रतीक माता पार्वती, इसके बाद समेटने की षक्ति आती है जिसका प्रतीक मां दुर्गा हैं जिन्होंने सभी बातों पर विजय प्राप्त कर लिया। तीसरी षक्ति सहन षक्ति जिसकी प्रतीक मां जगतअम्बा हैं जो निःस्वार्थ प्यार व स्वीकार्यता की मूरत हैं। चौथी षक्ति संतुश्टता की है जिसका प्रतीक मां संतोशी हैं। पांचवी षक्ति परखने की षक्ति है कि क्या सही है, क्या गलत है जिसका प्रतीक मां गायत्री हैं। छठवीं षक्ति है निर्णय करने की जिसका प्रतीक मां सरस्वती हैं। सातवां षक्ति सामना करने की जिसका प्रतीक मां काली हैं। हमें अपने अंदर की कमजोरियों स्वीकार नहीं करना है बल्कि उनका सामना करना हैं। वास्तव में हमें सहन लोगों का करना होता है और सामना विकारों का, बुराईयों का। लेकिन इसके विपरीत हम, लोगों को सामना करने लगते हैं और विकारों, बुराईयों को सहने लगते हैं।
इस अवसर पर आज भिलाई सेवाकेन्द्र की संचालिका राजयोगिनी ब्र.कु. आषा दीदी जी ने झांकी का अवलोकन किया एवं दीप प्रज्ज्वलन कर आज झांकी का उद्घाटन किया। उन्होंने विजयादषमी की सभी को षुभकामनायें दी और आषीर्वचन देते हुए कहा कि हम अपने कर्मेन्द्रियों पर विजयी बन रहे हैं इसकी खुषी होनी चाहिये। केवल रावण का पुतला न जलायें बल्कि अपने अंदर के रावण को जलायें।

ईश्वरीय सेवा में,
ब्र.कु. मंजू
प्रति,
भ्राता सम्पादक महोदय,
छैनि क………………………..
बिलासपुर (छ.ग.)

 

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