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विवश मनुष्य को संस्कारित करते हैं भगवान – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी
सादर प्रकाशनार्थ
प्रेस विज्ञप्ति
विवश मनुष्य को संस्कारित करते हैं भगवान – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी
परमात्म अनुभव के लिए दिव्य बुद्धि रूपी नेत्र जरूरी
परमात्मा का ज्योति स्वरूप सर्वधर्ममान्य व सार्वभौमिक सत्य
ज्योतिर्लिंग, नूर, जेहोवा, निराकार, अखण्ड ज्योति, शिव, शिलापति आदि के रूप में परमात्मा याद किया
मन के विज्ञान का परमशास्त्र : गीता – वेब सीरिज़ का दसवां सप्ताह
गीता का चौथा अध्याय – ज्ञान-कर्म-सन्यास योग की विवेचना की गई
बिलासपुर, टिकरापाराः- जिस युग में धर्म की अतिग्लानि होने लगती है, मनुष्य में विवशता आ जाती है तब उसे पुनः संस्कारित कर सूर्यवंशी बनाने के लिए भगवान धरती पर आते हैं। चार वर्णों की रचना भगवान ने नहीं की, ये तो मनुष्य के कर्मां की गुणवत्ता पर आधारित है। सतयुग त्रेता में इंसान भगवान जैसे थे, द्वापर में इंसान इंसान जैसा रहने लगा लेकिन कलियुग में तो इंसान में असुरत्व आता गया। ज्ञानसूर्य परमात्मा ने यह ज्ञान मनु अर्थात् मन को दिया। मनु ने इक्ष्वाकु को और फिर राजऋषियों को यह ज्ञान मिला उसके बाद लुप्तप्राय हो गया। ज्ञान लुप्तप्राय नहीं हुआ लेकिन मनुष्य के जीवन से सभी बातें, सभी संस्कार लगभग लुप्त होने के कगार पर है अब पुनः इस गीता के युग में परमात्मा यह ज्ञान दे रहे हैं और अधर्म का नाश कर एक सत्य धर्म सत्य युग की स्थापना का कार्य कर रहे हैं ऐसी दुनिया जहां एक धर्म, एक राज्य, एक भाषा, एक कुल, एक मत होगी, सुख-शान्ति संपन्न राज्य होगा।
उक्त बातें ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा में ‘‘मन के विज्ञान का उत्तम शास्त्र – गीता’’ विषय पर हर रविवार को आयोजित वेब श्रृंखला़ के दसवें सप्ताह में साधकों को ऑनलाइन संबोधित करते हुए सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्र.कु. मंजू दीदी जी ने कही। आपने आगे कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता को समझने के लिए हमें अपने ज्ञान कपाट को खोलकर रखना जरूरी है। भगवान के अवतरण को सिद्ध करने के लिए उदाहरण देते हुए कहा कि जिस प्रकार एक बच्चे के संकट के समय पिता ये नहीं सोचता कि कोई और उसे बचा लेगा, बिना किसी देरी के किसी भी कीमत पर वह स्वयं ही उसे बचाने का प्रयत्न करता हैं। उसी प्रकार जब परमात्मा की हम सभी संतान डगमग होने लगती हैं तब भगवान को धरती पर आना पड़ता है।
परमात्मा के ज्योति स्वरूप को हिन्दू धर्म में ज्योतिर्लिंग, मुस्लिम धर्म में नूर, सिक्ख धर्म में निराकार, निर्भउ, निर्वैर, क्रिश्च्यन धर्म में लाइट, जैन धर्म में शिलापति, जापान में लाल पत्थर के रूप में जिसे चिंकोनसेकी कहा अर्थात् शांति के दाता, पारसी होली फायर के रूप में स्वीकार करते हैं। परमात्मा की महिमा में अजोनि, अजन्मा, अव्यक्त कहा गया है। तुलसी दास जी ने भी परमात्मा के निराकार स्वरूप के बारे में कहा है कि वह बिना पैर के चलता है, बिना कान के सुनता है, बिना हाथों के कर्म करता है, बिना जीभ के सभी रसों का आनन्द लेता है बिना वाणी के बहुत बड़े वक्ता हैं ऐसी परमात्मा की महिमा है।
वह चौथे अध्याय में परमात्मा की सत्य पहचान व उनके अवतरण के लक्षण के बारे में विस्तार से बताया गया है। केवल तत्वदर्शी अर्थात् आत्मज्ञानी ही परमात्मा का साक्षात्कार कर सकते हैं जो ज्ञान और साधना के द्वारा पवित्र बनते हैं, भय और क्रोध से मुक्त हैं वे परमात्मा के दिव्य जन्म को देख सकते हैं। कर्म-अकर्म-विकर्म की गति को उदाहरण से समझाते हुए आपने कहा कि जैसे बीज बोना एक कर्म है, उसका फल खाना अकर्म है लेकिन बीज को पुनः बोना श्रेष्ठ कर्म है और वे ही बुद्धिमान योगी हैं।
प्रति,
भ्राता सम्पादक महोदय,
दैनिक………………………..
बिलासपुर (छ.ग.)