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Rajrishi

विषय चिंतन व क्रोध योगियों के महान शत्रु हैं – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी

 सादर प्रकाषनार्थ
प्रेस विज्ञप्ति
विषय चिंतन व क्रोध योगियों के महान शत्रु हैं – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी
कामना व क्रोध से बुद्धि का नाष व मनुष्य का पतन हो जाता है
इन्द्रिय संयम, विषय त्याग और राग द्वेष से रहित होना भगवत्प्राप्ति में सहायक
मन के विज्ञान का परमशास्त्र : गीता – वेब सीरिज़ का सातवां सप्ताह
स्थितप्रज्ञ अर्थात् स्थिरबुद्धि की परिभाषा व क्रोध के नुकसान के बारे में बताया गया…

बिलासपुर, टिकरापाराः- विषयों का चिंतन करने से उसमें आसक्ति उत्पन्न हो जाती है, आसक्ति से कामना और कामना में विघ्न पड़ने पर क्रोध की उत्पत्ति होती है। क्रोध से मूढ़ भाव उत्पन्न होता है जिससे स्मरण शक्ति भ्रमित हो जाती है उसे समझ नहीं आता कि मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, कर्तव्य-अकर्तव्य का ज्ञान नहीं रहता, बुद्धि का नाश हो जाता है इससे बुद्धिमान से बुद्धिमान मनुष्य की भी मानसिक स्थिति गिर जाती है। इसे आज की परिभाषा में डिप्रेशन या अवसाद कहा जाता है। इससे बचने के लिए सभी इन्द्रियों अर्थात् कर्मेन्द्रियों व ज्ञानेन्द्रियों को वश में रखना आवश्यक है। जब सभी इन्द्रियां वश में होंगी तो आसक्ति उत्पन्न नहीं होगी। लेकिन यदि एक भी इन्द्रिय में विषयों के प्रति आसक्ति हुई तो वह बुद्धि को अपनी ओर आकर्षित कर लेगी और बुद्धि की एकाग्रता, स्थिरता भंग हो जाएगी तथा मन विचलित हो जाएगा और नियंत्रण अपने हाथ में नहीं रहेगा। इसके लिए व्यक्ति को आंतरिक प्रसन्नता के साथ ईश्वर के  ध्यान का अभ्यास करना चाहिए। इससे दुखों का नाश हो जाएगा और बुद्धि परमात्मा में एकाग्र होकर स्थिर हो जाएगी। हालांकि नए साधक ध्यान अभ्यास के लिए शुरूआत में मेडिटेशन कॉमेन्ट्री या गीतों का सहारा ले सकते हैं। धीरे-धीरे अभ्यास होने से फिर चलते-फिरते वह स्थिति बनी रहती है।
उक्त बातें ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा में ‘‘मन के विज्ञान का उत्तम शास्त्र – गीता’’ विषय पर हर रविवार को आयोजित वेब श्रृंखला़ के सातवें सप्ताह में साधकों को संबोधित करते हुए सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्र.कु. मंजू दीदी जी ने कही। दीदी ने इस भाग में स्थिरबुद्धि व्यक्ति की परिभाषा, उनके बोल, चाल आदि लक्षणों के बारे में विस्तार से बताया। स्थिरबुद्धि वाले मनुष्य को दुख में अभाव नहीं सताता और सुख में किसी व्यक्ति, वस्तु या वैभव की कमी से भी प्रभावित नहीं होता, सातों गुणों से संपन्न, सदा संतुष्टता का भाव होता है। जैसे कछुआ सब ओर से अपने अंगों को समेट लेता है ऐसे ही मुनि अर्थात् स्थिर बुद्धि वाला व्यक्ति विषय-विकारों से अपनी इन्द्रियों को सब प्रकार से हटा लेता है।
इससे पूर्व के एपिसोड में दीदी ने सबसे पहले पात्र परिचय कराकर विशाद योग में अर्जुन की मनोदशा व सांख्य योग में भगवान द्वारा अर्जुन को दिए आत्मा के ज्ञान के बारे में विस्तार से बताया। श्रृंखला में अगले रविवार को स्थितप्रज्ञ के तीसरे व अंतिम भाग के बारे में विस्तार से बताया जायेगा। गीता सर्वशास्त्रों में शिरोमणि है इसलिए अनेक लोग इस क्लास का ऑनलाइन लाभ ले रहे हैं। हर रविवार शाम 7.30 बजे फ्रीकांफ्रेन्सकॉल एप में इाउंदरनकपकप मीटिंग आईडी डालकर कोई भी जिज्ञासु इस कार्यक्रम का निःशुल्क लाभ ले सकते हैं।

प्रति,
भ्राता सम्पादक महोदय,
दैनिक………………………..
बिलासपुर (छ.ग.)

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