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Rajrishi

स्वयं को चार्ज करने मेडिटेशन व सकारात्मक चिंतन जरूरी – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी

सादर प्रकाशनार्थ
प्रेस विज्ञप्ति
स्वयं को चार्ज करने मेडिटेशन व सकारात्मक चिंतन जरूरी – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी
गृहस्थ संभालते हुए दिनचर्या का एक घण्टा अपने लिए जरूर निकालें
ब्रह्माकुमारीज़ बलौदा में मेडिटेशन का बेसिक कोर्स शुरू
मनुष्य जीवन का लक्ष्य जानने स्वयं की पहचान जरूरी

बलौदा :- सत्य हमेंशा सत्य ही होता है भले ही उसे कोई स्वीकार न करे और झूठ झूठ ही होता है भले ही उसे सब स्वीकार करें। शराब आदि का व्यसन हमारे धन, संबंध और शरीर सभी का नुकसान करता ही है। इससे बचने के लिए जीवन में आध्यात्मिकता को अपनाना जरूरी है। हम कौन हैं, कहां से आए हैं, हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है? यही तो आत्मा का अध्ययन अर्थात् आध्यात्म है। सभी जानते हैं कि शरीर विनाशी और आत्मा शाश्वत है। जिस प्रकार जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी और आकाश ये पांच तत्वों की आवश्यकता शरीर को होती है उसी प्रकार सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति ये सात गुण आत्मा को खींचते है। हम आज मोबाइल के चार्जिंग का बहुत ख्याल रखते हैं, शरीर की ऊर्जा के लिए भी कम से कम दो बार भोजन व एक बार नाश्ता जरूर करते हैं। लेकिन आज आत्मा रूपी बैटरी भी डिस्चार्ज हो चुकी है। जिसकी निशानी है क्रोध, चिड़चिड़ापन, ईर्ष्या, द्वेष, आलस्य आदि। आत्मा को चार्ज करने के लिए सकारात्मक विचार और मेडिटेशन की जरूरत होती है।
उक्त बातें ब्रह्माकुमारीज़ शिव-दर्शन भवन बलौदा में आज से प्रारंभ हुए मेडिटेशन के बेसिक कोर्स में वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी जी ने कही। आपने सभी से आग्रह करते हुए कहा कि गृहस्थ को संभालते हुए रोज की दिनचर्या में अपना एक घण्टा सिर्फ और सिर्फ अपने लिए रखें दूसरे कार्य करने के लिए आपके पास 23 घण्टे हैं। इस एक घण्टे में अपनी आत्मा और शरीर के लिए सकारात्मक चिंतन, मेडिटेशन और प्राणायाम जरूर करें। जब ये एक घण्टा शक्तिशाली होगा तो हमारा हर कार्य कुशलतापूर्वक पूरा होगा। जीवन में प्रेम और शांति स्वतः आ जायेंगे। सत्संग हमें प्यार व इमोशन के साथ हिम्मत भी देता है।
जीवन के 7 दिनों में केवल 7 घण्टों का एक्सपेरिमेंट जरूर करें…
ईश्वर, परमात्मा, भगवान जो कि प्यार व सर्व गुणों के सागर हैं उनसे अपना संबंध जोड़ना ही योग है। उन्हें प्यार से याद करने के लिए स्वयं को प्यार करना व जानना जरूरी है। हम दिन भर में मैं और मेरा शब्द का प्रयोग बार-बार करते हैं लेकिन कभी ये नहीं सोचते कि मैं अलग है और मेरा अलग है। वास्तव में ‘मैं’ कहने वाली आत्मा है और शरीर व शरीर के अंगों के लिए ‘मेरा’ शब्द का प्रयोग करती है। दीदी ने उक्त बातों को अनेक उदाहरण देकर स्पष्ट किया। आगे के सत्र में इसके बारे में व अन्य विषयों की गहराई बतायी जाएगी। इसलिए दीदी ने सभी को ज्ञान की बातों को रिजेक्ट या एक्सेप्ट न करते हुए केवल सात घण्टे का एक्सपेरिमेन्ट जरूर करें।

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