brahmakumaris Tikrapara
सम्पूर्ण समर्पण के लिये भी घर गृहस्थ छोड़ने की आवश्यकता नही है: ब्रह्माकुमारी गायत्री*

*सम्पूर्ण समर्पण के लिये भी घर गृहस्थ छोड़ने की आवश्यकता नही है: ब्रह्माकुमारी गायत्री*
*सच्चे दिल से परमात्मा को याद करे तो परमात्मा पदमगुना रूहानी प्यार देते है।*
बिलासपुर: शिव अनुराग भवन राजकिशोरनगर मे गायत्री बहन का परमात्म महावाक्य पर चिंतन चल रहा है। समर्पण का अर्थ यह नही कि घर गृहस्थ छोड़ सेवाकेन्द्र मे रहे। परमात्मा समर्पण का यथार्थ अर्थ समझाते है कि न घर बार छोड़ना है न ही लौकिक कर्म छोड़ना है, बस तन मन धन ईश्वर को संकल्प से समर्पित कर परमात्मा के दिशा निर्देश पर चलना है।
दीदी ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज़ सेवाकेन्द्रों मे समर्पित भाई बहनों की संख्या पूरे विश्व मे डेढ़ लाख के लगभग ही है बाकी अधिकतर गृहस्थ संभालते ईश्वरीय सेवाओं में सहयोगी बनते है। परमात्मा का प्यार सबके लिये समान है पर लेने मे अंतर है। ट्रस्टी बनकर ईश्वर का हुक्म मानकर कर्म करना ही सच्चा समपर्ण है। समर्पण को एक दृष्टांत के द्वारा स्पष्ट किया कि जैसे हाथी को कुछ दिया जाता है तो वह उसे उपर बैठे महावत को दे देता है। खाने की चीज़ महावत के इशारे पर खुद भी ग्रहण करता है। राजा हरिश्चन्द्र का मिसाल शास्त्रो मे भी है।
दीदी ने कहा कि परमात्मा को ज्ञानी के साथ साथ योगी आत्मा प्रिय है। योग से आत्मा भरपूर हो जाती है तब बाहरी वैभव आकर्षित नही करती।