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Brahma Kumaris Raj Kishore Nagar

ज्ञान से वंचित, आलसी, भ्रमित बुद्धि और आसूरी प्रवृत्ति वाले लोग नहीं लेते भगवान की शरण.

**ब्रह्मा कुमारी मंजू दीदी ने पितृ पक्ष पर दिया गहन आध्यात्मिक ज्ञान: श्रीमद् भगवद गीता के सातवें अध्याय का महत्व समझाया**

*ज्ञान से वंचित, आलसी, भ्रमित बुद्धि और आसूरी प्रवृत्ति वाले लोग नहीं लेते भगवान की शरण…*

*सभी को ‘मौत के पहले व बाद क्या..?’ साहित्य भेंट की गई।*

**बिलासपुर, 12 सितम्बर 2025** – ब्रह्मा कुमारीज़ शिव अनुराग भवन राज किशोर नगर में पितृ पक्ष के विशेष अवसर पर **ब्रह्मा कुमारी मंजू दीदी** ने **पूर्वजों के आवाहन, क्षमादान और श्रीमद् भगवद गीता के सातवें अध्याय ‘ज्ञान-विज्ञान योग’ के महत्व** पर एक ज्ञानवर्धक उद्बोधन दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि पितृ पक्ष केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि श्रद्धा, आत्म-चिंतन और आत्म-परिवर्तन का अनमोल समय है।

मंजू दीदी ने बताया कि **”पितृ दोष” हमारी अपनी नकारात्मक सोच और कर्मों का परिणाम है**, विशेष रूप से जीते जी माता-पिता या बड़ों को मनसा, वाचा, कर्मणा से ठेस पहुँचाने का। उन्होंने सभी को हृदय की गहराई से क्षमा मांगने और भविष्य में किसी के भी साथ गलत व्यवहार न करने की प्रेरणा दी, क्योंकि आत्मा अपने साथ संस्कार लेकर जाती है। दीदी ने समझाया कि सूक्ष्म रूप में उपस्थित पूर्वजों को प्रेम, शांति और शक्ति का दान देने से वे तृप्त होकर हमें दुआएं और आशीर्वाद देते हैं।

अपने उद्बोधन में, दीदी ने आत्मा के अजर-अमर और अविनाशी स्वरूप को समझाया, यह बताते हुए कि आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर को धारण करती है। उन्होंने इस महत्वपूर्ण सत्य पर बल दिया कि **आत्मा मनुष्य जन्म में ही पुनर्जन्म लेती है, न कि पशु योनियों में**। उन्होंने कई व्यावहारिक उदाहरणों और पूर्व जन्म की स्मृतियों का उल्लेख किया, जिससे यह सिद्ध हुआ कि आत्मा सदैव मनुष्य योनि में ही रहती है, भले ही उसके कर्मों के अनुसार जीवन पशु जैसा हो जाए।

उद्बोधन का मुख्य केंद्र श्रीमद् भगवद गीता का **सातवाँ अध्याय, “ज्ञान-विज्ञान योग”** रहा, जिसे पितृ पक्ष में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। दीदी ने बताया कि इस अध्याय में स्वयं भगवान परमात्मा अपने परम ज्ञान और प्रकृति के आठ तत्वों का रहस्योद्घाटन करते हैं। वे कहते हैं कि **वे सभी का मूल हैं और सब कुछ उन्हीं में समाहित है**। उन्होंने परमात्मा को **एक, सदा पवित्र, जन्म-मरण के चक्र से परे और सभी आत्माओं का पिता** बताया, जो एवर प्योर (सदा पवित्र) हैं।

दीदी ने बतलाया कि भगवान को जानना अत्यंत दुर्लभ है, उन्हें हजारों में कोई ही पहचान पाते हैं। ज्ञान से वंचित, आलसी, भ्रमित बुद्धि और आसूरी प्रवृत्ति वाले – ये चार प्रकार के लोग भगवान की शरण नहीं लेते। जबकि आर्त अर्थात् पीड़ित, ज्ञान की जिज्ञासा रखने वाले जिज्ञासु, संसार का सुख चाहने वाले अर्थार्थी और ज्ञानी यह चार प्रकार के लोग भगवान की भक्ति में रहते हैं।

मंजू दीदी ने सच्ची भक्ति की परिभाषा को विस्तार से समझाया और कहा कि भक्ति केवल बाहरी कर्मकांडों तक सीमित नहीं है, बल्कि **परमात्मा के प्रेम में खोकर अपने मन को एकाग्र करना** और अपने भीतर के विकारों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार) को परमात्मा को ‘अक का फूल’ या ‘धतूरे का फूल’ रूपी अर्पण करना ही श्रेष्ठ भक्ति है। उन्होंने एक व्यावहारिक जीवन सूत्र देते हुए कहा, **”जो अच्छा लगे उसे सहेज लो (सेव), जिससे दूसरे खुश हों उसे साझा करो (शेयर), और जो अच्छा न लगे उसे हटा दो (डिलीट)** – इन सिद्धांतों को जीवन में अपनाने से सदा सुखी रह सकते हैं।

कार्यक्रम के समापन पर, ब्रह्मा कुमारी मंजू दीदी ने सभी उपस्थित लोगों को परमात्मा के साथ अपने पूर्वजों को भोग स्वीकार कराया। इस अवसर पर **”मौत के बाद क्या” और “मौत के पहले क्या”** जैसी ज्ञानवर्धक पुस्तकें भी भेंट की गईं। दीदी ने सभी को निरंतर योग, ध्यान और आत्म-चिंतन के माध्यम से अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाने और खुशी बांटने का महत्वपूर्ण संदेश दिया, जिससे व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में शांति और संतुष्टि बनी रहे।

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