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Brahma Kumaris Raj Kishore Nagar

दुख दूर करने परमात्मा से प्रत्यक्ष संबंध जोड़ना आवश्यक – ब्रह्मा कुमारी मंजू दीदी

*दुख दूर करने परमात्मा से प्रत्यक्ष संबंध जोड़ना आवश्यक – ब्रह्मा कुमारी मंजू दीदी*

ब्रह्मा कुमारीज़ के ‘गीता की राह, वाह जिंदगी वाह’ शिविर के सातवें दिन उजागर किये राजयोग से आत्मिक उन्नति और जीवनमुक्ति का मार्ग

बिलासपुर, : ब्रह्मा कुमारीज़, शिव अनुराग भवन, राज किशोर नगर में चल रहे ‘गीता की राह, वाह जिंदगी वाह’ शिविर के सातवें दिन, ब्रह्मा कुमारी मंजू दीदी के सान्निध्य में, श्रीमद् भगवद् गीता की गहन व्याख्या और आध्यात्मिक सिद्धांतों पर एक विस्तृत उद्बोधन प्रस्तुत किया गया। इस सत्र में आठवें अध्याय ‘अक्षर ब्रह्म योग’ से लेकर तेरहवें अध्याय ‘क्षेत्रज्ञ विभाग योग’ तक के महत्वपूर्ण रहस्यों को उजागर किया गया, जिसने उपस्थित प्रतिभागियों को आत्मिक जागृति और परमात्मा से गहरे संबंध की ओर अग्रसर किया।

मंजू दीदी ने अपने उद्बोधन की शुरुआत परमात्मा की गोद में बैठने की अनुभूति, मन की एकाग्रता और ‘मन मना भव’ की स्थिति के गहन अनुभव से की। उन्होंने स्पष्ट किया कि हम सभी आत्माएँ सुख, शांति, आनंद, प्रेम, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति जैसे सात गुणों का स्वरूप हैं। परमात्मा को ज्योति स्वरूप, स्वयंभू महेश्वर शिव ज्योति बताया गया, उन्हें प्यार से ‘बाबा’ (पिता) कहा जाता है। परमात्मा शांति, आनंद, प्रेम और शक्तियों के सागर हैं, और उनसे जुड़ने पर आत्मा भी शक्तियों से भरपूर हो जाती है।

*राजयोग और जीवन मुक्ति का मार्ग:* दीदी ने राजयोग के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि श्री कृष्ण के समान देवत्व के गुणों को धारण करने का लक्ष्य हमें मिलता है, जिसमें क्रोध, चिड़चिड़ापन, उदासी और मोह जैसी कमियों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। आठवें अध्याय ‘अक्षर ब्रह्म योग’ में समझाया गया कि मृत्यु के समय परमात्मा की याद में देह त्यागने वाली आत्मा सद्गति को प्राप्त करती है।

*ब्रह्मा का दिन और रात का रहस्य* : सृष्टि के चक्र को समझाते हुए, दीदी ने बताया कि सतयुग और त्रेता युग ‘ब्रह्मा का दिन’ है, जब आत्माएं सतो प्रधान स्थिति में होती हैं, और द्वापर व कलयुग ‘ब्रह्मा की रात’ है, जब आत्माएं तमो प्रधान बन जाती हैं। उन्होंने जोर दिया कि स्वर्ग और नर्क कहीं और नहीं, बल्कि यहीं हैं; प्रेम से रहना स्वर्ग है और क्रोध में रहना नर्क। परमधाम को व्यक्त और अव्यक्त सृष्टि से परे एक शाश्वत आयाम बताया गया है। परमात्मा ने समझाया कि जब मनुष्य आत्माएं सतो प्रधान स्थिति में होती हैं, तो प्रकृति भी सतो प्रधान होती है, और जब तमो प्रधान बन जाती हैं, तो प्रकृति के पाँच तत्व भी तमो प्रधान हो जाते हैं।
*परमात्मा ही सर्वोच्च; उनसे प्रत्यक्ष संबंध जोड़ने का आह्वान* : दीदी ने स्पष्ट किया कि परमात्मा ही इस जगत के पिता, माता, धाता (पालनकर्ता) और पितामह हैं, और वे ही पवित्र ओमकार, ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद हैं। उन्होंने कहा कि दुखियों के दुख दूर करने के लिए परमात्मा, जो सुख के सागर हैं, से सीधा कनेक्शन जोड़ना अत्यंत आवश्यक है। नौवें अध्याय के 25वें श्लोक का उल्लेख करते हुए, उन्होंने समझाया कि देवताओं का पूजन करने वाले देवताओं को, पितरों का पूजन करने वाले पितरों को, भूतों का पूजन करने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं, परंतु परमात्मा का पूजन करने वाले (यानी उन्हें याद करने वाले) परमधाम पहुँचते हैं। उन्होंने ‘हेड ऑफ द डिपार्टमेंट’ के रूप में एक ज्योति स्वरूप परमात्मा को पहचानने और उनसे सीधा संबंध जोड़ने का महत्व समझाया।
*जीवन में सकारात्मकता और आत्म-परिवर्तन:* मंजू दीदी ने व्यवहारिक जीवन के लिए भी कई महत्वपूर्ण शिक्षाएँ दीं। उन्होंने भय रहित जीवन जीने, अपनी कमजोरियों को स्वीकार करने, और स्वयं को ‘खुली किताब’ बनाने की प्रेरणा दी। उन्होंने यह भी कहा कि “निंदा उसी की होती है जो जिंदा है”, इसलिए दूसरों के द्वारा निंदा या प्रशंसा से अप्रभावित होकर अपने श्रेष्ठ कर्मों पर ध्यान देना चाहिए।
*विराट स्वरूप और भक्ति योग* : ग्यारहवें अध्याय में भगवान द्वारा अर्जुन को कराए गए विराट रूप के साक्षात्कार का भी संक्षिप्त उल्लेख किया गया, जिसमें प्रकृति के तांडव को विराट रूप का एक पहलू बताया गया। बारहवें अध्याय ‘भक्ति योग’ के संदर्भ में, दीदी ने बताया कि जो आत्माएँ अनन्य भाव से परमात्मा में लीन रहती हैं, वे उन्हें अत्यंत प्रिय हैं। उन्होंने समता, दयालुता, अहंकार मुक्ति और भयहीनता जैसे दिव्य गुणों पर जोर दिया।
*शरीर और आत्मा का ज्ञान (क्षेत्रज्ञ विभाग योग):* तेरहवें अध्याय ‘क्षेत्रज्ञ विभाग योग’ में शरीर (क्षेत्र) और आत्मा (क्षेत्रज्ञ) के अंतर को स्पष्ट किया गया। आत्मा को ज्योति बिंदु और शरीर का ज्ञाता बताया गया, जो शरीर के माध्यम से श्रेष्ठ कर्म करती है। दीदी ने मुस्कुराने की आदत डालने का महत्व समझाया, इसे खुशी, संपन्नता और मनुष्य होने की पहचान बताया, जो अनेक चेहरों पर मुस्कान ला सकती है।
अंत में, ‘विश्व धरा के रंग मंच पर देखा एक नजारा है’ जैसे भक्तिमय गीतों ने वातावरण को दिव्य और प्रेरणादायक बना दिया। यह उद्बोधन आत्मिक उन्नति और जीवन को सकारात्मक दिशा प्रदान करने के लिए एक महत्वपूर्ण अनुभव साबित हुआ।

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