Brahma Kumaris Raj Kishore Nagar
जीवन में सुख-दुःख से प्रभावित नहीं होता कर्म योगी व्यक्ति – ब्रह्मा कुमारी मंजू दीदी

*जीवन में सुख-दुःख से प्रभावित नहीं होता कर्म योगी व्यक्ति – ब्रह्मा कुमारी मंजू दीदी*
शिव अनुराग भवन में ‘श्रीमद्भगवत गीता की राह वाह जिंदगी वाह’ शिविर के छठे दिन कर्म योग और ध्यान की विधि पर गहन चिंतन
बिलासपुर, 13 सितंबर : ब्रह्मा कुमारीज़, राज किशोर नगर में ब्रह्मा कुमारी मंजू दीदी जी के सान्निध्य में आयोजित “श्रीमद्भगवत गीता की राह वाह जिंदगी वाह” शिविर के छठे दिन, प्रतिभागियों ने श्रीमद्भगवद्गीता के पाँचवें और छठवें अध्याय पर आधारित कर्म संन्यास योग (वैराग्य योग) और आत्म संयम योग (ध्यान योग) की गहन शिक्षाओं को आत्मसात किया। उद्बोधन में परमपिता परमात्मा के ज्योति स्वरूप से शांति और शक्ति के अनुभवों पर विशेष जोर दिया गया, जिससे बुद्धि के कपाट खुलते हैं और जीवन धन्य होता है।
निष्काम कर्म की श्रेष्ठता श्रीमद्भगवद्गीता का पाँचवाँ अध्याय कर्म और संन्यास के बीच के अंतर को स्पष्ट करता है। भगवान ने समझाया कि फल की इच्छा का त्याग कर कर्म करना ही सच्चा संन्यास है, न कि घर-गृहस्थी या कर्तव्यों का त्याग करना। एक कर्म योगी व्यक्ति जीवन में सुख-दुःख से प्रभावित नहीं होता। ज्ञान का अर्थ घर-बार छोड़ना नहीं है, बल्कि भगवान को अपने घर का सदस्य बनाना है।
दीदी ने कहा कि सन्यास का अर्थ बुरी आदतों और बुराइयों का त्याग करना है, न कि गृहस्थ जीवन, जिम्मेदारियों या कर्तव्यों का। राजा जनक का उदाहरण देते हुए जीवन मुक्त स्थिति को समझाया गया, जहाँ एक पैर परमधाम की ओर और दूसरा जीवन की जिम्मेदारियों को निभाने में लगा रहता है। यह भी बताया गया कि जो अपने कर्मफल भगवान को समर्पित कर देते हैं और आसक्ति रहित होकर कर्म करते हैं, वे पाप कर्मों से उसी प्रकार अछूते रहते हैं जिस प्रकार कमल का पत्ता जल से अप्रभावित रहता है। भगवान ने मनुष्य को विवेक युक्त बुद्धि और स्वतंत्रता दोनों दी हैं, इसलिए वह अपने कर्मों के लिए स्वयं जिम्मेदार है, और ईश्वर को दोष नहीं देना चाहिए।
छठवें अध्याय में भगवान ने ध्यान में बैठने का वैज्ञानिक तरीका समझाया, जिसे आत्म संयम योग कहते हैं। इसमें मन को नियंत्रित करना और एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाना सिखाया जाता है। ध्यान की विधि के लिए स्वच्छ स्थान, उचित आसन (न बहुत ऊंचा, न बहुत नीचा), शुद्ध मन, नियंत्रित विचार और क्रियाएं, तथा एक बिंदु पर ध्यान को स्थिर करना आवश्यक है। नींद से बचने के लिए आँखों को आधी खुली रखने की सलाह दी गई। शरीर, गर्दन और सिर को सीधा रखते हुए, आँखों को हिलाए बिना एक बिंदु पर ध्यान को स्थिर करने से आत्मिक अनुभूतियां गहरी होती हैं। ब्रह्मचर्य (ब्रह्म में विचरण करना) का महत्व भी बताया गया।
उद्बोधन में संतुलित जीवन जीने पर जोर दिया गया, जिसमें आध्यात्मिकता और भौतिकता दोनों का संतुलन हो (100% आध्यात्मिक, 100% भौतिक)। भगवान ने समझाया कि जो लोग बहुत अधिक या बहुत कम भोजन करते हैं, या बहुत अधिक या बहुत कम सोते हैं, वे योग में सफल नहीं होते; इसमें भी संतुलन आवश्यक है, और सात्विक भोजन की महत्ता बताई
गई है। एक योगी तपस्वी, ज्ञानी और सकाम कर्मी से भी श्रेष्ठ होता है, इसीलिए अर्जुन को योगी बनने के लिए कहा गया है। नियमित ध्यान और सकारात्मक सोच से मन की एकाग्रता बढ़ती है और नकारात्मकता समाप्त होती है।
शिविर में श्रीमद्भगवद्गीता के आठवें अध्याय की प्रस्तावना भी दी गई, जिसमें ब्रह्म तत्व, आध्यात्म, कर्म योग, आदि देव, अध यज्ञ, अधभूत और मृत्यु के समय परमात्मा की याद के महत्व पर चर्चा की गई। समापन पर कहा गया कि दुनिया को अक्सर वे लोग बदल डालते हैं, जिन्हें दुनिया कुछ बदलने लायक समझती ही नहीं, और यह बदलाव कछुए की चाल जैसे, धीरे-धीरे होता है।
यह शिविर प्रतिभागियों को श्रीमद्भगवद्गीता के गहन ज्ञान के माध्यम से अपने जीवन को रूपांतरित करने और एक संतुलित, शांतिपूर्ण तथा शक्तिशाली जीवन जीने की कला सिखा रहा है।