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brahmakumaris Tikrapara

स्वयं को बदलने की भावना से सभी कार्यों मे विजय प्राप्त होती है

सादर प्रकाशनार्थ
स्वयं को बदलने की भावना से सभी कार्यों मे विजय प्राप्त होती है
परमात्मा पर निश्चय होते ही गहनों का मोह त्याग एकधक से सादगी को अपनाया बृजइंद्रा दादी ने: गायत्री

बिलासपुर: शिव अनुराग भवन राजकिशोर नगर मे आदिरत्नो की विशेषताओं पर चिंतन चल रहा है ।गायत्री बहन ने कहा कि बृजइंद्रा दादी के साथ निर्मलशांता दादी (ब्रह्मा बाबा की लौकिक बेटी) ने लिखा कि बृजइंद्रा दादी उनकी भाभी थी। गहनों का शौक इतना कि राजपरिवार की रानियों का ऋंगार फीका लगता था। परमात्मा पर निश्चय होते ही उन्होंने सर्वस्व समर्पित करते यह भी नही सोचा कि बच्चों के लिये कुछ बचा कर रखू। रमेश भाई ने लिखा कि परमात्मा शिव के ब्रह्मा बाबा के तन मे प्रथम अवतरण की आदिदृष्टा बृजइंद्रा दादी थी इसलिए कृष्ण के भी प्रथम दर्शन का उच्च सौभाग्य भी उन्ही का हो सकता है।
परमात्मा के महावाक्य पर चिंतन करते गायत्री बहन ने कहा कि परमात्मा एक है और सभी मनुष्य आत्माओं के पिता अर्थात परमपिता है। परमात्मा मतलब परम आत्मा जिसका अपना शरीर नही है। आज सभी मनुष्यों मे पांच विकार रूपी रावण व्यापक है इसलिए परमात्मा कहते है सर्वव्यापी रावण है।
परमात्मा कहते है स्वयं को बदलने की भावना हो तो सभी बातों में सहज विजयी बन सकते है। दूसरों को बदलने का प्रयास करने वाले धोखा खा सकते है। जो मोल्ड होना जानते है वह रियल गोल्ड बन जाते है।