brahmakumaris Tikrapara
निरहंकारी होना महानता की नीव है

*हमारे कार्य ऐसे हों जो बड़ों को निश्चिंत क़र दें… ब्रह्मा कुमारी मंजू*
*जिम्मेदारी को बोझ समझने से थकान और सेवा समझने से खुशी की अनुभूति होती है…*
*सादगी रायल्टी और निश्चिन्त जीवन सबसे बडी सेवा है*
*निरहंकारी होना महानता की नीव है*
बिलासपुर: शिव अनुराग भवन राजकिशोर नगर मे आदिरत्नो की विशेषताओं पर चिंतन चल रहा है ।सरला दीदी के मनमोहिनी दादी के साथ का अनुभव सुनाते ने बीके मंजू ने कहा कि मै जब मधुबन मे मनमोहिनी दादी से मिलकर सेवा समाचार सुनाई तो दादी ने कहा स्वयं का निश्चिन्त रहना और बडो का निश्चिन्त रहना सबसे बडी सेवा है। आजकल कई जिम्मेदारियों को बोझ समझ लेते है जिससे सेवा मे खुशी के बदले थकान महसूस करते है। मनमोहिनी दादी का परमात्मा पर अटूट निश्चय था इसलिए जिम्मेदारिया निभाते निश्चिन्त रहती थी। ओमप्रकाश भाई ने लिखा कि मनमोहिनी दादी दाल खिचडी खाकर, अल्प साधनों से निर्वाह करने के बाद भी उनके चाल चलन मे ऐसी रायल्टी झलकती थी कि पता नही चलता कि अंदर से उनका जीवन सादगी भरा है।
परमात्मा के महावाक्य पर चिंतन करते मंजू दीदी ने कहा कि देहअभिमान मे आने से ही देवताओं ने अपना देवत्व खोया, अब परमात्मा फिर से देवी देवता बना रहे है तो सबसे पहले निरहंकारी बनना होगा।
दीदी ने कहा कि परमात्मा के कार्य में अगर कुछ अर्पित करते है तो यह ख्याल नही आना चाहिए कि हम शिव बाबा को दे रहे है। परमात्मा हमारे दिये एक एक कणे दाने का कई गुना रिटर्न अवश्य देते है।