brahmakumaris Tikrapara
जैसा हम सोचते हैं वैसा ही हम बनते हैं-ब्र. कु. शशिप्रभा*

प्रेस विज्ञप्ति
सादर प्रकाश नार्थ:
*जैसा हम सोचते हैं वैसा ही हम बनते हैं-ब्र. कु. शशिप्रभा*
*मनुष्य का जन्म हमेशा मनुष्य योनि में ही होता हैl*
*परिस्थितियों को बदलने के लिए हमेशा सकारात्मक रहें-शशिप्रभा*
*महावीर हनुमान की तरह अपनी स्थिति मजबूत बनाएं -ब्रम्हाकुमारी शशिप्रभा*
*संगम युग का एक जन्म अमूल्य, हीरे तुल्य हैl*
बिलासपुर:-टिकरापारा, प्रभु दर्शन भवन के हार्मनी हॉल में खुशी हर पल विषय पर चल रहे राजयोग अनुभूति शिविर का छठवां दिन शिविरार्थीयों के लिए आकर्षक रहाlटिकरापारा
सेवाकेंद्र संचालिका ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी के सानिध्य में चल रहे इस शिविर को संबोधित करते हुए राजयोग शिक्षिका ब्रम्हाकुमारी शशिप्रभा ने कहा कि हम जिस प्रकार का विचार लेते हैं हमारे मन के विचरों से हमारे ब्रेन में एक रसायन उत्पन्न होता है और प्रैक्टिकल में हमारे जीवन में सचमुच ऐसा ही होने लगता है lशक्ति हमारे मन के पास है हम जैसा सोचते हैं वैसा ही बन जाते हैं, हमारी शारीरिक प्रक्रिया भी इसी तरह से कार्य करने लगता हैं,अगर हम स्वास्थ्य, संपत्ति और खुशी चाहते हैं तो हर एक परिस्थिति में अपने मन को पॉजिटिव कमाण्ड हमें देना होगा और इसप्रकार हम सकारात्मक रहकर हर समस्या का समाधान निकाल सकते हैं l
महावीर हनुमान की तरह कभी बहुत सूक्ष्म और कभी विशाल,बहुत ऊंची स्थिति में स्थित हो जाए इससे परिस्थितियों में हम विजय प्राप्त कर सकते हैं l
ब्रम्हाकुमारी शशिप्रभा ने आगे भारत के उत्थान और पतन की कहानी पर समझाते हुए कहा कि मनुष्य आत्माएं 84 जन्म लेती हैऔर मनुष्य हमेशा मनुष्य ही बनता है कभी किसी अन्य योनि में पशु,पक्षी, शेर,बकरी, कीड़े -मकोड़े नहीं बनते हैंl सतयुग त्रेतायुग द्वापर युग और कलयुग क्रमश:1250 वर्ष का होता हैं,सतयुग में मनुष्य का 8 जन्म होता हैं,वहाँ कभी अकाले मृत्यु नहीं होता,त्रेतायुग में 12 जन्म, द्वापर युग में 21 जन्म,कलयुग में 42 जन्म होता हैं और द्वापर युग से अकाले मृत्यु शुरू होता हैं, भक्ति, पूजा, शास्त्र,मंदिरों का निर्माण आदि सभी द्वापर युग से ही शुरू होता हैl अपनी दिव्यता को खोने के कारण द्वापरयुग से मनुष्य के द्वारा कई पाप कर्म होता हैं अपने पाप कर्मों की सजा भोगने के लिए मनुष्य को अन्य योनि में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती l मनुष्य-मनुष्य बनकर ही अपने पाप कर्मों की सजा भोगता हैl वास्तव में एक जन्म जो अमूल्य गाया हुआ है यह वर्तमान संगमयुग के लिए है, यह संगम जब कलयुग और सतयुग का मिलन होता है, आत्मा और परमात्मा का मिलन होता है,वर्तमान समय संगमयुग है, जो हीरे तुल्य है l मनुष्य हर जन्म में मनुष्य ही बनता है इस पर विज्ञान ने अनेक केस स्टडी किया है,जिस प्रकार आम का बीज डालने से आम का ही पौधा बढ़ता है,पपीते का बीज डालने से पपीता ही फलता है,मनुष्य तो चैतन्य बीज है मनुष्य में जो संस्कार है,विवेक है, इससे स्पष्ट है कि मनुष्य मनुष्य ही बनता है यह हम सबके लिए खुशी की बात हैl
84 जन्मों का हुआ यह खेल पुराना है गीत पर सभी को अंत में म्यूजिकल एक्सरसाइज भी कराया गयाl