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Rajrishi

ब्रह्माकुमारी संस्था की प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती (मम्मा) की 55वीं पुण्यतिथि मनाई गई…

सादर प्रकाषनार्थ
प्रेस विज्ञप्ति
प्रेम व शान्ति की अवतार थीं मम्मा – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी
ब्रह्माकुमारी संस्था की प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती (मम्मा) की 55वीं पुण्यतिथि मनाई गई…
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बिलासपुर, टिकरापाराः- प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती जी (मम्मा) की 55वीं पुण्यतिथि मनाई गई। टिकरापारा सेवाकेन्द्र में ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी व राजकिशोर नगर, मस्तूरी, नरियरा व बलौदा की बहनों ने मम्मा के चित्र पर पुष्प चढ़ाकर भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर मंजू दीदी ने मम्मा के जीवन चरित्र पर प्रकाश डाला एवं उनकी विषेषताएं सुनाई। जिसमें सेवाकेन्द्र के भाई-बहनें ऑनलाइन जुड़े रहे व घर से अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये। सेवाकेन्द्र के बाबा की कुटिया प्रांगण में लगाए गए अंगूर की बेल पर लगे हुए अंगूर का आज मम्मा के निमित्म भोग लगाया गया।
कमजोरियों को महसूस कर परिवर्तन करें – मम्मा
मातेश्वरी जी कहते थे इस ज्ञान मार्ग में चलना अर्थात् पुराने बुरे संस्कारों का त्याग जरूरी है। यदि परिवर्तन नहीं तो अपनी कमजोरियों को महसूस कर परिवर्तन जरूर करें। दीदी ने बताया कि मम्मा ने कभी भी यज्ञवत्सों की गलतियों या कमियों को फैलाया नहीं। गलतियों को दूर करने के लिए शिक्षा जरूर दी, लेकिन मन पर कभी न रखा। मम्मा के जीवन में गंभीरता व हर्षितमुखता का गुण एक साथ देखने को मिलता था। गंभीरता के कारण समाने, समेटने और सहनशीलता के गुण के कारण मम्मा प्रेम व शांति की अवतार थीं तथा क्रोध व आवेश से बिल्कुल मुक्त थीं।
स्व के प्रति अटेंशन होगा तो शिक्षाएं धारण भी होंगी – मंजू दीदी
रोज के सत्संग अर्थात् ज्ञानमुरली में दिए गए परमात्मा की श्रीमत पर मम्मा एक्यूरेट चलती थीं। इसलिए बहुत जल्द ही उन्होंने सम्पूर्णता को प्राप्त किया। मम्मा की शिक्षाएं व विशेषताएं हम सभी सुनते भी हैं वर्णन भी करते हैं और धारण भी करना चाहते हैं लेकिन कर्मक्षेत्र में हमारा अटेंशन कम हो जाता है।  मम्मा ने जैसे स्वमान में रहते हुए ज्ञान को जीवन में धारण किया ऐसे यदि हम भी जब शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारेंगे तब ही जीवन की सार्थकता होगी।
दीदी ने बताया कि बाबा ने मम्मा को किसी सेवाकेन्द्र संभालने नहीं भेजा बल्कि मुख्यालय में बड़े संगठन में रखा। वहीं से मम्मा देश के अनेक स्थानों पर ईश्वरीय सेवार्थ गईं। देखा जाए तो त्याग, तपस्या व सेवा जो पिताश्री ब्रह्माबाबा की विशेषता थी वही विशेषता मम्मा की भी थी। मम्मा का लौकिक नाम ओमराधे था उन्होंने 24 जून 1965 को सम्पूर्णता को प्राप्त कर अपने पार्थिव शरीर का त्याग किया।

प्रति,
भ्राता सम्पादक महोदय,
दैनिक………………………..
बिलासपुर (छ.ग.)

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