Rajrishi
नम्रता, मृदुभाषिता और आत्मविश्वास परिपक्व मनुष्य की पहचान : बीके मंजू

*नम्रता, मृदुभाषिता और आत्मविश्वास परिपक्व मनुष्य की पहचान : बीके मंजू*
*यज्ञ, ज्ञान और तप का कभी त्याग नही करना चाहिए*
बिलासपुर: शिव अनुराग भवन राजकिशोरनगर मे श्रीमद्भगवद्गीता के अंतिम अठारहवे अध्याय मोक्ष-सन्यास योग पर चिंतन करते मंजू दीदी ने कहा कि पके फल की तीन पहचान होती है पहला नरम दुसरा मीठा तीसरा रंग परिवर्तन । इसी प्रकार परिपक्व मनुष्य के स्वभाव मे भी नम्रता, मृदुभाषिता और आत्मविश्वास की झलक स्वतः दिखाई देती है।
पहले श्लोक मे परमात्मा ने त्याग और सन्यास मे भेद बताया कि कामना से अभिप्रेरित कर्म के त्याग को सन्यास और कर्मों के फल के त्याग को त्याग कह सकते है
परमात्मा त्याग पर अंतिम निर्णय देते है कि यज्ञ, ज्ञान, तप का कभी परित्याग नही करना चाहिए एवं आसक्ति और फल की इच्छा से मुक्त होकर करना चाहिए।
कन्यादान का अर्थ केवल कन्या के विवाह को समझते है किन्तु कन्या के बारे मे कहते है कन्या वह जो इक्कीस कुलों का उद्धार करे। इक्कीस कुल को दीदी ने स्पष्ट किया आठ जन्म सतयुग के बारह जन्म त्रेता युग के और एक जन्म संगमयुग के। इस जन्म मे जिन माता पिता ने अपनी कन्या को ईश्वरीय सेवा मे समर्पित किया वे अनेकों के इक्कीस जन्मों के उद्धार के निमित्त बनती है यही श्रेष्ठ कन्या दान है।
आज की मुरली मे परमात्मा ने रहमदिल बनकर सभी को सुख का रास्ता बताने की प्रेरणा दी । वरदान मे परमात्मा कहते है आत्मा बिन्दी परमात्मा बिन्दी और जो बीत गया उस पर पूर्णविराम की बिन्दी याद रहे तो सहजयोगी बन जायेंगे।