Rajrishi
कर्म फल का त्याग सर्वश्रेष्ठ प्रालब्ध की कुंजी: ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी*

*दादी हृदयमोहिनी को द्वितीय पुण्यतिथि पर भोग लगाया गया व मेडिटेशन के माध्यम से श्रद्धांजलि दी गई ।*
*दिव्यता दिवस के रूप में मनायी गई दादी की पुण्यतिथि*
उनके ईश्वरीय सेवा के बारे मे दीदी ने बताया कि दादी नौ वर्ष की आयु मे 1936 मे यज्ञ मे समर्पित हुई। उन्हें ट्रान्स मे जाकर परमात्मा से संदेश लाने का वरदान प्राप्त था। सरल हृदय के कारण ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त होने के बाद ब्रह्मा बाबा और शिव बाबा दोनो दादी के तन मे अवतरित होते रहे। 11 मार्च 2021 को दादी अव्यक्त हुई।
*कर्म फल का त्याग सर्वश्रेष्ठ प्रालब्ध की कुंजी: ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी*
बिलासपुर:शिव अनुराग भवन राजकिशोरनगर मे ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी ने अनुभव साझा किया कि बचपन से ही श्रीमद्भगवद्गीता मे विशेष रूचि इसलिए थी क्योंकि परिवार और गुरुओ का सानिध्य ही ऐसा मिला।
कोरोना (इसके लिए दीदी करूणा शब्द प्रयोग करती है) के समय बाहरी सेवा बंद रहने के कारण और परमात्मा की प्रेरणा से गीता का गहराई से अध्ययन करने का सौभाग्य मिला। मन मे हिलोरे ले रही उत्कंठा को आप सभी के साथ साझा करते अपार खुशी महसूस हो रही है।
बारहवा अध्याय भक्ति योग है। भक्ति के साथ पवित्रता का गहरा संबंध है इसलिए मंदिरों मे अथवा घरों मे व्रत के दिन सात्विक भोजन भोग लगाकर स्वीकार करने की परंपरा है।
ब्रह्माकुमारीज़ मे भोजन की पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है किन्तु यहाँ आने वालो के लिए इसका बंधन नही है। सभी का लक्ष्य अपने साम्यर्थ अनुसार भिन्न हो सकता है पर ज्ञान की गहराई और अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति से पवित्रता की धारणा सहज हो जाती है।
बारहवें अध्याय मे परमात्मा किसी न किसी रूप से परमात्म कार्य मे सहयोगी बने रहने का आह्वान करते है और कहते है भले ही मेरे बताये मार्ग पर चलना कष्टों से रहित नही हो फिर भी प्रयास मत छोड़ो।
बारहवें श्लोक मे परमात्मा अर्जुन से कहते है कि *अभ्यास की अपेक्षा ज्ञान श्रेष्ठ है, ज्ञान की अपेक्षा ध्यान श्रेष्ठ है, ध्यान की अपेक्षा कर्म फल का त्याग श्रेष्ठ है अंर्तगत त्याग की अपेक्षा शांति सुख की प्राप्ति श्रेष्ठ है।* परमात्मा कहते है द्वेष से मुक्त, सबके मित्र, दयालु भक्त मुझे अतिप्रिय है।