Rajrishi
भोजन की रूचि से भी सतो, रजो, तमो गुणी मनुष्य की परख होती है: ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी

*भोजन की रूचि से भी सतो, रजो, तमो गुणी मनुष्य की परख होती है: ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी*
*सदा श्रेष्ठ कर्म चरित्र मे झलके तो सफलता अवश्य मिलती है*
श्रद्धा के बिना त्याग तप व दान निष्फल है
बिलासपुर: शिव अनुराग भवन राजकिशोरनगर मे श्रीमद्भगवद्गीता के सत्रहवे अध्याय श्रद्धात्रय विभाग योग पर चिंतन करते मंजू दीदी ने कहा कि रसीले, सरस, पौष्टिक, प्राकृतिक रूप से स्वादिष्ट भोजन सतोगुणी मनुष्यों को प्रिय होते है और ऐसा भोजन आयु, सद्गुण, स्वास्थ्य, शक्ति प्रसंन्नता मे वृद्धि करने वाला होता है। नमकीन, कडवे, खट्टे, गरम, मिर्च मसाले युक्त, शुष्क भोजन रजोगुणी मनुष्यों को प्रिय होते है और ऐसा भोजन पीडा, दुःख, रोग बढाने वाला होता है। अधिक पका, बासी, सडा, प्रदुषित, अशुद्ध भोजन तमोगुणी मनुष्यों को प्रिय होते है और ऐसा भोजन कामवासना व क्रूरता आदि को बढाता है।
बीसवे श्लोक मे परमात्मा कहते है दान भी योग्य स्थल, पात्र, काल तथा द्रव्य का चुनाव कर देना चाहिए। दान के दुरुपयोग से देने वाले का भी पाप का खाता बनता है। पैसे का दुरुपयोग करने वाले लोगों को दान देने से बचना चाहिए। अट्ठाइसवे श्लोक मे परमात्मा ने स्पष्ट किया है कि श्रद्धा को त्याग कर कितना भी विशाल यज्ञ किया जाय या रत्नों का दान किया जाय या एक अंगूठे पर खडे होकर कठोर तप किया जाय पर ये सारी की सारी बातें निष्फल होती है।
आज की मुरली पर दीदी ने विशेष कहा कि सफलता पाना है तो हर कर्म चरित्र को उंचा उठाने वाला विकारों के प्रभाव से मुक्त हो।