Rajrishi
गुणो के आधार पर तय होते है देवता और असुर: बीके मंजू दीदी
*गुणो के आधार पर तय होते है देवता और असुर: बीके मंजू दीदी*
*सभी मनुष्य आत्माओं का मूल स्वभाव दैवीय गुण ही है*
बिलासपुर: शिव अनुराग भवन राजकिशोरनगर मे श्रीमद्भगवद्गीता के सोलहवे अध्याय पर चिंतन को आगे बढाते दीदी ने कहा कि सोलहवां अध्याय देवासुर संपद विभाग योग है। इसमे पालन करने योग्य आचरण मुख्य चार है पहला ज्ञान श्रवण दुसरा अन्न शुद्धि तीसरा दैवीय गुणो की धारणा और चौथा ब्रम्हचर्य । ब्रह्माकुमारीज़ सेवाकेन्द्र मे इन चारों विषयों पर स्वउन्नति के लिए निरंतर क्लास कराई जाती है बस नियमित क्लास आवश्यक है।
पहले तीन श्लोक मे परमात्मा ने दैवीय गुणो को स्पष्ट किया है जिनमे निर्भयता(सत्य कर्मो के प्रति), मन की शुद्धि, तप, दान, इंद्रियों पर नियंत्रण, स्पष्टवादिता, अहिंसा, व्यवहार मे भद्रता इत्यादि मुख्य है। इसी प्रकार पाखंड, दंभ, कामुकता, क्रूरता, धनलोलुपता, अवैध कर्म इत्यादि आसुरी गुण है।
दैवीय गुण मुक्ति ( एवं जीवन मुक्ति) की ओर ले जाता है जबकि आसुरी प्रवृत्ति बंधन मे लाता है। इस प्रकार गीता का गहराई से अध्ययन करने से परमात्मा के इस ज्ञान की पुष्टि होती है कि देवता और असुर किसी और लोक के निवासी नही बल्कि हम अपने आचरण से ही दैवीय और आसुरी गुणो को प्रत्यक्ष करते है।
दीदी ने कहा कि के पी एम (खाओ पियो मौज करो) को हमने शुद्ध खाओ, ज्ञान अमृत पियो और मेडिटेशन के रूप मे अपना लिया। परमात्मा ने चौबीसवे श्लोक मे कहा कि आडंबरों को छोड़ शास्त्रो के विधि विधान अनुरूप सही गलत परख कर सदैव सही कर्म करना चाहिए।
आज की मुरली मे परमात्मा ने ज्ञान को आचरण मे लाने और स्वभाव मधुर रखने की बात कही। वरदान मे परमात्मा कहते है कि तीर्थ स्थानों की स्मृति से पुण्य आत्मा बनो।