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Rajrishi

संस्कार परिवर्तन के लिये स्वयं पर दया जरूरी – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी

संस्कार परिवर्तन के लिये स्वयं पर दया जरूरी – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी
ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा में योग-साधना कार्यक्रम का आयोजन

‘‘सभी धर्मों की मान्यतायें भिन्न-भिन्न हो सकती हैं किन्तु सभी धर्मों की एक बात समान है वो है दया। दूसरों पर दया और कृपा की भावना रखना तो अच्छी बात है ही किन्तु स्वयं पर दया करना उससे भी बड़ी और अच्छी बात है। स्वयं पर दया करने का अर्थ भी समझना होगा। दया का अर्थ ये नहीं कि आज कार्य करने का मन नहीं है तो सो जायें या किसी कार्य को पोस्टपोन कर दें। वास्तविक दया तो वह है जिसमें किसी भी कार्य की नियमितता भी हो और उसमें दृढ़ता भी हो। अच्छे कार्य के लिये बुरे कार्यों को समर्पित कर देना, और आलस्य व अलबेलेपन का त्याग कर देना, वास्तव में यही अपने पर सच्ची-सच्ची दया करना है।’’
उक्त बातें टिकरापारा सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्र.कु. मंजू दीदी जी ने रविवार को सेवाकेन्द्र में आयोजित सामूहिक योग साधना कार्यक्रम के दौरान कहीं। आपने परमात्म महावाक्य सुनाते हुए कहा कि चाहे सामने वाला व्यक्ति कैसा भी संस्कार वाला हो, कितना भी विरोधी हो यदि हम उन पर रहम, दया व कृपा की भावना रखेंगे तो वह गले मिल जायेगा। हम सभी आत्माएं वास्तव में आदि सनातन देवी देवता धर्म की आत्मायें हैं यह स्मृति में रखने से देवतायी संस्कार आने लगेंगे, किसी से लेने की भावना नहीं रखें।
अंत में सभी साधकों ने इस जन्म में बचपन से आज तक जो भी पाप हुए हैं उन्हें सार रूप में लिखा और उसे परमात्मा को समर्पित कर वो कर्म दोबारा न करने का संकल्प लिया।

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