आलस्य विद्यार्थियों का महाषत्रु – मंजू दीदी
अच्छे संस्कार हैं हमारे परम मित्र
ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा में आयोजित 12 दिवसीय बाल संस्कार षिविर का सातवां दिन
‘‘स्वच्छता से एकाग्रता में मदद मिलती है। सभी विद्यार्थियों को अपना कमरा, अपना बाथरूम साफ-सुथरा रखना चाहिये। स्वच्छता से मन शांत और एकाग्र रहता है। अपने कमरे की सफाई खुद करो, सुबह उठते ही अपना बिस्तर समेटने की सभी को आदत डालनी चाहिये। किसी भी कार्य की सम्पन्नता में आलस्य सबसे बड़ी रूकावट है। विषेषकर विद्यार्थी जीवन में आलस्य का त्याग करना जरूरी है। कर्मों की फिलॉसॉफी को जानना बहुत जरूरी है। हमारे कर्मों का फल अवष्य मिलता है यदि इस जन्म में नहीं मिलता तो वो किसी न किसी जन्म में जरूर मिलता है। जीवन में हमारे तीन दोस्त होते हैं- धन-दौलत, संबंधी और श्रेष्ठ संस्कार। जब जीवन का अंत होता है तो पहला दोस्त धन-दौलत तुरंत साथ छोड़ देता है, दूसरा दोस्त हमारे संबंधी श्मषान तक साथ देते हैं लेकिन तीसरा दोस्त हमारे श्रेष्ठ संस्कार आगे तक हमारा साथ देते हैं और हमारे साथ जाते हैं। इसलिए सिकंदर भी इतना बड़ा राजा हुआ लेकिन मरने से पहले उसने कहा था कि जब मैं मरूं तब मेरे दोनों हाथ खुले रखना ताकि लोग देखें कि इतना बड़ा राजा भी खाली हाथ गया।’
उक्त बातें ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा में आयोजित 12 दिवसीय बाल संस्कार षिविर के सातवें दिन बच्चों को संबोधित करते हुए सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्र.कु. मंजू दीदी जी ने कही। साथ ही आपने बताया कि हमारे शरीर में 75 प्रतिषत भाग पानी का होता है और पानी पर विचारों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। जब हम क्रोध, ईर्ष्या, घृणा के भाव रखते हैं तब पानी पर बहुत ही खराब इमेज बनते हैं और जब हम प्रेम का भाव, अच्छे विचार रखते हैं तब बहुत ही सुंदर-सुंदर रंगोलियों का शेप बनता है।
हर बात में खुष रहो….
छोटी-सी जिंदगी है, हर बात में खुष रहो, जो चेहरा पास न हो, उसकी आवाज में खुष रहो, कोई रूठा हो तुमसे उसके इस अंदाज में भी खुष रहो, जो लम्हें लौट के नहीं आने वाले, उन लम्हों की याद में खुष रहो, कल किसने देखा है, अपने आज में खुष रहो, खुषियों का इंतजार किसलिये, दूसरों की मुस्कान में खुष रहो, क्यों तड़पते हो हरपल किसी के साथ को, कभी तो अपने आप में खुष रहो, छोटी-सी तो जिंदगी है, हर हाल में खुष रहो।
विभिन्न आसनों का अभ्यास कराया गया।
आज बच्चों को कटिसौन्दर्यासन, नौकासंचालन, शषकासन, वज्रासन, सिंहासन, हास्यासन, एक्यूप्रेषर क्लेपिंग का अभ्यास कराया गया। साथ ही ध्यान, प्राणायाम, गीता श्लोक, लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती…की पंक्तियां एवं दो आध्यात्मिक गीतों का अभ्यास भी कराया गया।
प्रेस-विज्ञप्ति 2
तनाव संकेत है सकारात्मक विचार लेने का – मंजू दीदी
ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा में अभिभावकों के लिए षिविर का आयोजन
जिस प्रकार कमजोरी, चक्कर, थकान, भूख आदि लक्षण दर्षाते हैं कि हमारे शरीर को ऊर्जा की आवष्यकता है। इसके लिए हम दिन में तीन से चार बार भोजन करते हैं जो कि शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है। इसी तरह छोटी सी जबान पर हमारा कन्ट्रोल न होना, तनाव, गुस्सा, घृणा, निराषा, ईर्ष्या आदि का आना संकेत देता है कि हमें सकारात्मक विचारों रूपी भोजन लेने की आवष्यकता है। सकारात्मक विचार हमारे जीवन में ग्लूकोज़ के बॉटल की तरह है जो हमारी कमजोरी दूर कर हमें ऊर्जा प्रदान करती है। उसी तरह जैसे हम शरीर की स्वच्छता, ताजगी के लिए रोज स्नान करते हैं ऐसे ही आत्मा की स्वच्छता व ताजगी के रोज मेडिटेषन करना बहुत जरूरी है। आज चारों ओर घर में, ऑफिस में, समाज में देष में बल्कि ये कहा जाये कि पूरे विष्व में नकारात्मकता का वातावरण है। विष्व की जनसंख्या सात अरब हो गई है किन्तु अच्छे कर्म की फ्रिक्वेन्सी बहुत कम है। इसी के लिए ही ब्रह्माकुमारीज़ के द्वारा सात अरब सत्कर्मों की महायोजना भी बनाई गई है। जिसके लिए सभी प्रयासरत हैं। समाज में परिवर्तन लाने के लिए पांच पाण्डव ही पर्याप्त हैं अर्थात् सकारात्मक चिंतन वाले या इस दिषा में कार्य करने वाले मुट्ठी भर लोग ही पर्याप्त हैं। समाज में सकारात्मकता फैलाने के इसी उद्देष्य को लेकर इस तरह के कार्यक्रम सतत् आयोजित किये जाते हैं।
उक्त बातें ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्र.कु. मंजू दीदी ने अभिभावकों के लिए आयोजित षिविर में कही।
भ्राता सम्पादक महोदय,
दैनिक………………………..
बिलासपुर (छ.ग.)