भावना और विवेक का संतुलन है राजयोग – मंजू दीदी
परमात्म प्रेम का जादू है जीवन में मुस्कुराहट का आना
अभिभावक ले रहे राजयोग की षिक्षा
‘‘योग अर्थात् जोड़ और राजयोग अर्थात् आत्मा का परमात्मा से मिलन। राजयोग में सर्वप्रकार के योग शामिल हैं। यह ज्ञान योग भी है क्योंकि राजयोग ध्यान करने से पूर्व प्रॉपर ज्ञान दिया जाता है, आत्मा, परमात्मा, सृष्टि चक्र, वर्तमान समय में हमारी भूमिका क्या है, इसका ज्ञान दिया जाता है। यह कर्मयोग भी है क्योंकि कर्म करते हुए ईष्वर की याद में रहने का अभ्यास किया जाता है। विकारों, बुराईयों के सन्यास या कहें हठपूर्वक त्याग करने के कारण यह सन्यासयोग एवं हठयोग भी है। समत्व योग क्योंकि यह भक्ति और ज्ञान का संतुलन बनाता है भक्ति की अधिकता अंधविष्वास और ज्ञान की अधिकता अहंकार उत्पन्न कर देती है। भक्ति में भावना होती है और ज्ञान के लिए विवेक चाहिये, राजयोग दोनों में संतुलन बनाता है। भावनाषून्य नहीं होना है बैलेन्स पर्सनैलिटी बनानी है। विवेक न हो फिर भी चलेगा लेकिन भावना न हो काम नहीं चलेगा। अच्छाई या बुराई तो सबमें होती हैं, गलतियां सबसे होती हैं लेकिन अपनी गलती स्वीकार कर उसे परिवर्तन करना ही स्वयं की उन्नति का साधन है।’’
उक्त बातें ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा में अभिभावकों के लिए आयोजित षिविर को संबोधित करते हुए सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्र.कु. मंजू दीदी जी ने कही। आपने कहा कि हमें अपनी पर्सनैलिटी मैंगो एट्टीट्यूड की तरह रखनी चाहिये, हमारा व्यवहार सॉफ्ट हो और अंदर से हम मजबूत हों, सेन्सिटीव न हों।
बने खुले विचारों वाले, दायरे में न बांधे स्वयं कोः-
यदि हमने अपने आपको एक सीमित दायरे में बांधा, अपना एक कम्फर्ट जोन बना लिया या बंधे हुए विचारों वाला बना लिया तो हम कभी भी सत्यता तक नहीं पहुंच सकते और आध्यात्म के मार्ग में कभी उन्नति नहीं कर सकते। और आध्यात्म के लिए निरंतरता जरूरी है। इसके लिए हमें समय निकालना होगा। समय तब ही निकल सकता है जब लगन हो आगे बढ़ने का। सकारात्मकता के सागर परमात्मा और उनके प्रेम का यही जादू है कि जीवन में मुस्कुराहट आ जाती है, तनाव दूर होने लगता है।
भ्राता सम्पादक महोदय,
दैनिक………………………..
बिलासपुर (छ.ग.)