स्वकल्याण से ही दूसरों का कल्याण संभव – मंजू दीदी
वनवासी विकास समिति के प्रशिक्षार्थियों को दिये प्रेरणात्मक विचार
‘‘ जब तक हम गलत चीजों को देखने से अपनी आंखों पर, गलत शब्द बोलने से मुख पर व क्रोध में स्वयं पर कंट्रोल नहीं कर सकते तब तक स्वकल्याण नहीं कर सकते और जब तक स्व कल्याण नहीं करते तो दूसरों का कल्याण कैसे कर सकते हैं। स्व पर नियंत्रण करने के लिए आत्मा की व उसके मूल गुणों की पहचान जरूरी है। आत्मा शरीर की कंट्रोलर है। जिसमें मन, बुद्धि व संस्कार समाहित है। प्रेम, शान्ति, पवित्रता आदि आत्मा के मूल गुण हैं।’
उक्त बातें वनवासी कल्याण समिति द्वारा आयोजित चालीस दिवसीय ग्रीष्मकालीन प्रषिक्षण षिविर ‘निर्माण प्रकल्प’ के षिविरार्थियों को संबोधित करते हुए ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्र.कु. मंजू दीदी जी ने कही।
विपरीत परिस्थितियों में भी जो खुश रहे वो है युवा
मंजू दीदी ने कहा कि कुछ अच्छा कर जाने के लिए हमें श्रेष्ठ संकल्प शक्ति व दृढ़ता की शक्ति की आवष्यकता है। कोई भी परिस्थिति में यदि कोई खुष रह सकता है तो वो है युवा। खुष रहना एक कला है जो सकारात्मकता से आती है। अगर विचार नकारात्मक बन गये तो, हिटलर या ओसामा बिन लादेन की दिषा हो सकती है और वहीं यदि दिषा सकारात्मक हो तो हम स्वामी विवेकानंद, षिवाजी की तरह भी बन सकते हैं। हमें अपना हर कार्य समय के पूर्व या समय के साथ कर लेना चाहिये। ये हमें उन्नति की ओर ले जायेगा। समय के बाद करना आलस्य की निषानी है जो मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। आगे बढ़ने के लिए यह याद रखना होगा कि होठों पर आई बात को भी निगलना पड़ता है, फौलाद बनने के लिए लोहे को भी पिघलना पड़ता है, तपे बिना कोई सोना निर्मल नहीं बन जाता, जग को रोषन करने दिये को भी जलना पड़ता है। कभी-भी दूसरों के प्रभाव में आकर अपने जीवन के मूल्यों को नष्ट न करें। इसके लिए आध्यात्मिक दक्षता का अधिक होना जरूरी है।
सरस्वती षिषु मंदिर के सम्यक बौद्ध सभागृह में आयोजित इस कार्यक्रम में प्रदीप देषपाण्डे, षिषिर कोरान्ने, ब्र.कु. संगीता, ब्र.कु. पूर्णिमा, श्रीमति उषा साहू एवं बड़ी संख्या में युवा प्रषिक्षार्थी उपस्थित थे।