प्रेस-विज्ञप्ति-1
संगठन में एक-दूसरे की विषेषताओं को समझना जरूरी-ः ब्र.कु. कविता
अपोलो हॉस्पीटल में स्ट्रेस मैनेजमेन्ट पर दिया गया व्याख्यान
‘‘जीवन में तनावमुक्त रहने के लिए मन की स्थिति का अच्छा होना आवष्यक है। आज दौड़-भाग की दुनिया में ज्यादा प्रतिस्पर्धा, तथा पद व पोजीषन के लिए हम भाग रहे हैं लेकिन कहीं न कहीं ये हमें सुख-षांति भरे जीवन से दूर ले जा रही है। जीवन भर धन कमाने के बाद भी परिस्थिति ऐसी बन जाती है कि सारा कमाया हुआ धन हेल्थ में लगाना पड़ जाता है जिससे न हेल्थ रहती, न वेल्थ रहती है। आजकल लोग तनाव को भी नेचर मानने लगे हैं तथा उससे अचिवमेंट प्राप्त करना चाहते हैं। हम कोई भी कार्य को करते हुए शत् प्रतिषत एफर्ट नहीं लगाते हैं इसलिए उस कार्य से कभी खुषी नहीं मिलती। कभी-कभी हमें अपनी क्षमताओं का खुद को पता नहीं होता। किसी कार्य के प्रति समर्पणता, खुषनुमा मन और संतुलन से कार्य हमें सफलता दिलाती है। हर एक का कैरेक्टर समान नहीं होता क्योंकि सभी अलग-अलग क्षेत्रों से, अलग-अलग अनुभव लेकर अलग-अलग पारिवारिक माहौल से आये हुए होते हैं जिन्हें समझकर कार्य करना अत्यंत आवष्यक है।
उक्त विचार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के अपोलो हॉस्पीटल में आयोजित एक सेमिनार को संबोधित करते हुए मुम्बई से पधारीं ब्र.कु. कविता दीदी जी ने दिये। आपने आगे कहा कि जब जीवन में समस्या आती है तो हम यही प्रूफ करने लगते हैं कि हम राइट हैं और सामने वाला गलत है जो हमारे जीवन में तनाव व संघर्ष को जन्म देते हैं। इसके लिए हमें यही सोचना है कि हर कोई महत्वपूर्ण है हर किसी का रोल उसके सिवा और कोई अच्छे से प्ले नहीं कर सकता। उन्हें वैल्यू देने से ही हम सुख व शांति का अनुभव कर सकते हैं। हमें ये याद रखना होगा कि केवल पैसा, पद व पोजीषन कभी-भी प्यार की अनुभूति नहीं करा सकते हैं। जब तक एक-दूसरे की विषेषताओं के महत्व को नहीं समझेंगे तब तक सफलता को प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
हमारा अहंकार ही हमें दर्द और तनाव देता है….
परमात्मा द्वारा सिखाये गये मेडिटेषन करते हुए अपने अंदर के इगो-अहंकार को समाप्त किया जा सकता है। संगठन में हम पद और पोजीषन के पॉवर का उपयोग करते हैं, दूसरों को बार-बार उलाहना देते हैं तो इससे सामने वाले की मानसिक स्थिति को हम कमजोर करते हैं जिससे पूरे संगठन का कार्य बिगड़ जाता है। आध्यात्म कहता है कि गिरे को उठाओ न कि और गिरा दें। हमारा अहंकार ही हमें दर्द और तनाव देता है। शांति और प्रेम ही हमारी शक्ति को जागृत करती है और अहंकार समाप्त होता है।’’
इस अवसर पर अपोलो के मुख्य कार्यपालन अधिकारी डॉ. विशाल गोयल, अपोलो के मानव संसाधन विभाग के प्रमुख देब प्रिया, असिस्टेंट मैनेजर अजय जोग सहित अनेक डॉक्टर्स उपस्थित थे।
भ्राता सम्पादक महोदय,
दैनिक………………………..
बिलासपुर (छ.ग.)
प्रेस-विज्ञप्ति- 02
स्वयं व दूसरों की प्रषंसा से बढ़ती है सकारात्मकता -ः ब्र.कु. मंजू
युवा संस्कार षिविर के अंतिम दिन डिस्कवर एण्ड एप्रिषिऐट द सेल्फ विषय पर दिया गया व्याख्यान
‘‘इस अमूल्य जीवन में हमें सच्ची दिल से और सदा खुषी का अनुभव तभी होगा जब हम स्वयं को एप्रिषिऐट करना सीख जायेंगे तब हम समझ लें कि सफलता की ओर ये हमारा पहला कदम है क्योंकि जितना हम अपनी कमजोरियों को छुपाने का प्रयास करते हैं अर्थात् अपने आप से दूर भागते है, तो इससे हम अपनी कमजोरियों को अधिक बढ़ा देते हैं जिससे हमारे भीतर की आंतरिक शक्ति में कमी आने से हम सही निर्णय नहीं ले पाते और नकारात्मकता की ओर अग्रसर हो जाते है। इस समय हमें अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानना जरूरी है कि मै कौन हॅू, क्योंकि हर व्यक्ति की अपनी कुछ विषेषता होती है जो उसे दूसरों से अलग बनाती है और अपने लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग पर हमें अपने आप से संघर्ष कर अपनी कमजोरियों को जड़ से समाप्त करना होगा, और दृढ़ता के साथ ये संकल्प करना होगा कि हमें अपनी विषेषताओं का पतन करके कमजोरियों को अपने जीवन में स्थान कभी नही देना हैं। ’’
उक्त विचार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के टिकरापारा सेवाकेन्द्र में आयोजित युवा संस्कार शिविर के पांचवे दिन डिस्कवर एण्ड एप्रिशिऐट द सेल्फ विषय पर युवाओं को संबोधित करते हुए ब्र.कु. मंजू दीदीजी ने दिये। आपने बताया कि सभी के अंदर एक भूक होती है जो उसे अपने लक्ष्य की प्राप्ति की ओर प्रयासरत रहने की प्रेरणा देता हैं। जैसेः- यदि कोई हमारी प्रशंषा करे तो हम खुश हो जाते है और जब हम खुश होते है तो हमारे शरीर से पॉजिटिव हार्मेन्स निकलते है जिसके कारण हम आनंद की अनुभव करते है। कहते है कि खुशी जैसी कोई खुराक नहीं, और यह खुशी जीवन में सदैव बनी रहे यही है वास्तविक सफलता, जिसके माध्यम से हमारा तन और मन खुशियों से महक जाता है। यदि श्रेष्ठ मूल्यों के साथ किसी को आगे बढ़ाने का प्रयास किया जाए तो इस एक गुण के पीछे सभी गुण आ जाते है।
सोने से पूर्व सकारात्मक चिंतन करें…
आपने दृष्टांत के माध्यम से बताया कि, हमारे अवचेतन मन में असीम शक्ति है, हम जैसा संकल्प करके सोते हैं वैसे विचार हमारे अवचेतन मन में चलते है। इसलिए नकारात्मक चीजों को देख व पढ़कर ना सोएं, उसका प्रभाव सीधे हमारे मन पर पड़ता है। नकारात्मक विचार हमें जीवन के मूल लक्ष्य से भटका देते हैं इसलिए हमें सोते समय अच्छे विचार करके सोना चाहिए। जैसेः- प्रेरणादायी कोई किताब पढ़कर। सारे दिन में कर्म व्यवहार में होने वाली गलतियां का अनुभव कर और मेड़िटेशन करके हम अपने विचारों को समर्थ व श्रेष्ठ कर सकते है।
मेड़िटेषन से मिलता है समाधान…
मेड़िटेशन मानसिक और शारीरिक स्वास्थ के लिए लाभदायी हैं। अगर हमारे जीवन में कोई विध्न आया हो, तो यह बात याद रहे कि ‘‘किसी को नीचा दिखाकर हम कभी जीत नहीं सकते क्योकि ‘‘झुकते वही हैं जिनमे जान हाती है, अकड़े रहना मुर्दों की पहचान होती है। जीवन की सच्ची खुशी बांटने में है। और हम जितना इन मूल्यों को बांटते जायेंगे, हमारे अंदर वो बढ़ता जायेगा। कोई भी परिस्थिति उस परमशक्ति से बड़ी नही, क्योंकि हजार भुजाआें के साथ भगवान आपके साथ है और ‘‘जिसका साथी हा स्वयं भगवान, उसे क्या रोकेगा आंधी और तूफान‘‘।।
कार्यक्रम के अंत में कैंप में उपस्थित सभी युवाआें को सट्रिफिकेट प्रदान किया गया।
भ्राता सम्पादक महोदय,
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बिलासपुर (छ.ग.)