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Rajrishi

शान्ति की अवतार व प्रेम की मूरत थीं मम्मा – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी

सादर प्रकाषनार्थ
प्रेस-विज्ञप्ति
शान्ति की अवतार व प्रेम की मूरत थीं मम्मा – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी
बड़ों की आज्ञा पर चलने वाला आगे बढ़ जाता है…
ब्रह्माकुमारीज़ की प्रथम मुख्य प्रषासिका मातेष्वरी जगदम्बा सरस्वती जी की पुण्यतिथि मनाई गई

बिलासपुर, टिकरापारा 23 जून – प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईष्वरीय विष्व विद्यालय महिलाओं द्वारा संचालित संस्थान है। इसकी प्रथम मुख्य प्रषासिका मातेष्वरी जगदम्बा सरस्वती जी ने 24 जून 1965 को अपनी नष्वर देह का त्याग कर सम्पूर्णता को प्राप्त हुईं। पूरे विष्व भर के सेवाकेन्द्रों में उनकी पुण्यतिथि मनाई जा रही हैं। मातृत्व स्वरूप पालना करने के कारण मातेष्वरी जी को सभी ब्रह्मावत्स प्यार से ‘‘मम्मा’’ कहकर पुकारते थे। मम्मा सदा शीतल स्वभाव और मीठे बोल का उच्चारण करने वाली थी। उनका सदा यही लक्ष्य रहा कि मुझे सबके दुख दूर करने हैं। किसी भी हालत में, किसी भी बात में मम्मा को कभी क्रोध तो क्या, परन्तु आवेष भी नहीं आया। मम्मा की तेज आवाज किसी ने नहीं सुनी। मम्मा शान्ति की अवतार, प्रेम की मूर्त थीं। परमात्मा की श्रीमत पर सम्पूर्ण निष्चय था उन्हें। वे सदा ज्ञान मुरली द्वारा हर श्रीमत पर हां जी करती और उसे आचरण में लाती। इस हां जी के पाठ से ही वह सबसे आगे चली गईं। मम्मा हर एक बच्चे की बात को ऐसे समा लेती थीं जैसे कोई बात ही नहीं हुई। षिक्षाएं देते हुए भी अन्दर समा लेना, समाने की शक्ति और प्यार से उसको चेंज कर देना – यह बहुत बड़ी मम्मा की विषेषता रही। उन्होंने कभी दूसरों के अवगुण चित पर रखे ही नहीं। उनकी दिव्यता, सत्यता व प्यूरिटी की रॉयल्टी सदा चेहरे से झलकती थी। ज्ञान की धारणा व ज्ञान को सरलता से सबके सम्मुख रखने की वजह से ही उन्हें सरस्वती-गॉडेज ऑफ नॉलेज का टाइटल प्राप्त हुआ।
उक्त बातें ब्रह्माकुमारीज़ की प्रथम प्रषासिका मातेष्वरी जगदम्बा सरस्वती जी की पुण्यतिथि पर टिकरापारा सेवाकेन्द्र में आयोजित कार्यक्रम में साधकों को मम्मा की विषेषताएं बताते हुए सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी जी ने कही। आपने मम्मा की दी हुई विभिन्न मधुर षिक्षाएं सुनाते हुए कहा कि जो षिक्षा हम दूसरों को देते हैं, वह क्वालिफिकेषन्स हमारे में भी होनी चाहिए बाकी कमजोरी कौन सी है उसके विस्तार में जाने की जरूरत नहीं है। अपने को छोटा अर्थात् नीचा समझना भी कमजोरी है। फिर ऐसा भी न हो कि अभिमान में रहें। सबसे सर्वोत्तम स्टेज है परतन्त्रता न हो, मन की भी नहीं। बोलने का, शब्दों का भी मैनर्स चाहिए, भाषा भी अच्छी चाहिए, कोई मान का, इज्जत का भूखा है, कोई नाम-षान का भूखा है, उसे परखकर उस तरीके से व्यवहार करना है। कोई कैसा भी हो, कभी यह नहीं कहना चाहिए कि यह तो ऐसा है, यह सुधरेगा नहीं- ऐसा समझने से तो उनका जीवन चला गया, उनको तो हमें सुधारना है, हमारी रिस्पॉन्सिबिलिटी बहुत बड़ी है।
सभी ने मम्मा को अपनी स्मृति के साथ स्नेह-सुमनों से भी श्रद्धांजलि अर्पित की और उनकी षिक्षाओं को अपनाने के लिए संकल्पित हुए। मम्मा के निमित्त परमात्मा को भोग स्वीकार कराकर सभी को दिया गया। मम्मा की स्मृति पर टिकरापारा सेवाकेन्द्र की कुटिया में लगाए गए अंगूर के बेल का अंगूर भी सभी को दिया गया।

प्रति,
भ्राता सम्पादक महोदय,
दैनिक………………………..
बिलासपुर (छ.ग.)

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