सादर प्रकाषनार्थ
प्रेस विज्ञप्ति
नए संस्कारों की क्रांति है मकर संक्राति – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी
टिकरापारा में साधकोंको मकर संक्रान्ति का आध्यात्मिक महत्व बताकर त्यौहार मनाने के लिए किया प्रेरित
बिलासपुर,टिकरापाराः- जिस प्रकार भक्ति में पुरूषोत्तम महीने में दान-पुण्य कामहत्व होता है उसी प्रकार कलियुग अंत और सतयुग के प्रारंभ के समय पुरूषोत्तमसंगमयुग में ज्ञान-स्नान करके बुराईयों का दान व पुण्य कर्मों का खाता जमा करकेहर व्यक्ति उत्तम पुरूष बन सकता है। कहते हैं जब सूर्य का मकर राषि में प्रवेषहोता है तब मकर संक्रान्ति का पर्व मनाया जाता है। यह परिवर्तन का क्षण होता है। इसीप्रकार जीवन में भी परिवर्तन का समय आता है। ऋतुओं के परिवर्तन के अनुसार हमारे जीवनमें भी शारीरिक व मानसिक परिवर्तन आते हैं। मकर संक्रान्ति के दिन विषेषकरतिल का दान किया जाता है। तिल सफेद व काले रंग का होता है जो हमारे जीवन मेंआने वाले सकारात्मक व नकारात्मक परिस्थितियों को दर्षाता है। तिल को अलग से खाओतो कड़वा लगता है लेकिन जब उसमें गुड़ मिलाकर लड्डू बनाया जाता है तब वह स्वादिष्टहो जाता है अर्थात् जब हमारे व्यवहार में मिठास आ जाती है तब संबंधों कीकड़वाहट, गुण-अवगुण सब अच्छाई में परिवर्तित हो जाते हैं। मकर संक्रांति को संक्रमणकाल भी कहते हैं। इस काल में ज्ञानसूर्य परमात्मा भी राषि बदलते हैं। वे ब्रह्मलोकको छोड़कर इस धरती पर अवतरित होते हैं और नवयुग स्थापना के लिए संस्कारपरिवर्तन का अद्भूत कार्य करते हैं। हर क्रांति के पीछे बदलाव का ही उद्देष्य होताहै। संस्कारों की इस क्रांति से आनेवाली स्वर्णिम दुनिया में सुख-शांति-समृद्धिकी कोई कमी नहीं होगी।
उक्त बातें मकर संक्रान्ति पर्व के पावन अवसर पर ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा में प्रतिदिन के सत्संग को संबोधित करते हुए सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्रह्माकुमारी मंजू दीदीजी ने कही। आपने इस त्योहार के रीति रस्मों का आध्यात्मिक विवेचन करते हुए कहा किस्नान-ब्रह्ममुहूर्त के स्नान व प्रतिदिन के ज्ञानस्नान, तिल खाना – आत्मा की सूक्ष्मता व आत्मस्वरूप की साधना का यादगार है। पतंग आत्मा के गुणों को धारण करहल्का हो उड़ने का, लड्डू- एकता व मिठास का, तिलदान- अपनी छोटी से छोटी कमजोरी भी परमात्मा को दान देने का, अग्नि जलाना- ज्वालामुखी योग से विकर्मों के विनाष का प्रतीक है।
प्रति,
भ्राता सम्पादक महोदय,
दैनिक………………………..
बिलासपुर (छ.ग.)