Rajrishi
टिकरापारा में मना पिताश्री ब्रह्माबाबा का 145वां जन्मदिन

बिलासपुर टिकरापारा : ये हम सभी जानते हैं कि किसी की बुराई के लिए यदि एक ऊंगली दूसरे की ओर उठाते हैं तो तीन ऊंगलियों का इशारा हमारी ओर होता है। ये हमें यही बताता है दूसरे के परिवर्तन से स्वयं का परिवर्तन नहीं बल्कि स्वयं के परिवर्तन से ही दूसरों का व सारे विश्व का परिवर्तन संभव है। पिताश्री ब्रह्माबाबा को जब यह कहा जाता था कि आप पवित्र रहने की बात सीधे न कहा करें तो पिताश्री कहते थे कि ये तो परमात्मा शिव बाबा कहते हैं। और उनके महावाक्य श्रीमत हैं उसमें मनमत या परमत मिक्स नहीं किया जा सकता। वे बचपन से ही धर्म परायण तथा भक्तिभाव में लीन रहते थे। 60 वर्ष की आयु में उनके तन में परमात्मा शिव की प्रवेशता हुई और नई दुनिया की स्थापना का रहस्य समझाया। पिताश्री का लौकिक नाम दादा लेखराज था। नयी दुनिया की स्थापना अर्थ परमात्मा शिव ने इनका नाम ब्रह्मा रखा। सन् 1936 में स्वयं परमात्मा ने इनके माध्यम से इस संस्थान की स्थापना की।
उक्त बातें ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा सेवाकेन्द्र में पिताश्री ब्रह्माबाबा की 145वीं जयन्ती पर आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित साधकों को संबोधित करते हुए ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी जी ने कही। आपने बतलाया कि ब्रह्माबाबा ने नारी शक्ति के संकल्पों को साकार करते हुए माताओं-बहनों के सिर पर ज्ञान का कलश रखा और इस संस्थान का नाम प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय पड़ा। आज पूरे विश्व के 145 देशों में हजारों सेवाकेन्द्रों का संचालन माताओं और बहनों के द्वारा ही होता है। भाई इस ईश्वरीय कार्य में सहयोगी रहते हैं।
इस अवसर पर पिताश्री के निमित्त परमात्मा को भोग स्वीकार कराया गया। भ्राता कैलाश अग्रवाल जी, अनिल सिरवानी, सोनल लालवानी व रोशनी मनसुखानी ने अपने जीवन में परमात्मा की मदद के अनुभव साझा किए। निखिलेश भाई, कु. अविका व गौरी बहन ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में सिंधी परिवार के सदस्य शामिल हुए। सभी को ब्रह्माभोग स्वीकार कराया गया।