कमजोरी के संस्कार जलाये और स्नेह के रंग लगायें – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी
होली के आध्यात्मिक रहस्यों पर डाला गया प्रकाश


‘‘होली का पावन त्यौहार आपसी स्नेह व भाईचारे का पर्व है। इस पर्व को आध्यात्मिकता के साथ मनाने के लिये स्वयं के बुराइयों, कमजोरियों के संस्कारों को, शत्रुता को, कड़वाहट भरी पुरानी बातों को भूल कर अर्थात् होलीका जलाकर आपसी स्नेह व गुणों रूपी रंग एक-दूसरे को लगायें। ऐसा करने से मन होली अर्थात् पवित्र बन जायेगा। जिससे हम प्रभु प्रेम के रंग में रंग सकेंगे। और राजयोग मेडिटेशन के अभ्यास से प्राप्त अष्ट षक्तियों से हमारा जीवन सुख-शांति-खुशी रूपी रंगों से भर जायेगा। ’’
उक्त बातें ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्र.कु. मंजू दीदी जी ने होली के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में कहीं। दीदी ने होली शब्द के तीन अर्थों को आध्यात्मिक रीति से स्पष्ट करते हुए कहा कि जो बात हो गई वह है होली, दूसरा अंग्रेजी में होली पवित्र को कहते हैं और तीसरा होली अर्थात् हो-ली माना परमात्मा की बन गई। अर्थात् बीती बातों को भूलकर पवित्र बनकर परमात्मा का बन जाना ही सच्ची होली मनाना है और मनाने से पहले जलाया जाता है। होलिका में कंडे और धागे जलाये जाते हैं लेकिन कण्डा जल जाता है और धागा नहीं जलता। कण्डा है शरीर की निशानी क्योंकि शरीर विनाषी है और धागा है अतिसूक्ष्म आत्मा की निषानी, जो अजर-अमर-अविनाशी है। हमें अपने शरीर के पुराने, कु-संस्कारों को जलाना है और आत्मा के मूल संस्कारों जैसे- सुख, शांति, आनंद, प्रेम, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति को धारण करने हैं फिर होली स्वतः बन जायेंगे।
समीक्षा बहन एवं संगीता बहन नेे कुछ मनोरंजन, चुटकुले व गेम्स खिलवाएं जिसमें सभी भाई-बहनों ने उमंग-उत्साह के साथ भाग लिया। सुखराम भाई ने गीत गाया। होरीलाल भाई एवं बंटी भाई ने ‘‘जिंदगी मिलके बितायेगें……… के गीत पर, संध्या बहन एवं श्वेता बहन ने उड़ी उड़ी जाये……. के गीत एवं गौरी बहन, वर्षा बहन ने मल दे गुलाल मोहे के गीत पर…..सुन्दर नृत्य प्रस्तुत किया। अंत मे सभी भाई बहनो को प्रसाद वितरण किया गया।