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Rajrishi

गणेष जी के गुणों व शक्तियों को अपनाने के संकल्प के साथ करें विसर्जन – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी

सादर प्रकाषनार्थ
प्रेस विज्ञप्ति
गणेष जी के गुणों व शक्तियों को अपनाने के संकल्प के साथ करें विसर्जन – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी
ऑनलाइन क्लास में गणेश जी के आध्यात्मिक रहस्य पर डाला प्रकाष
बहनों ने मोदक बनाकर गणेष जी को लगाया भोग

बिलासपुर, टिकरापाराः- भारत देश के त्यौहार यहां की संस्कृति की विशेषता है। भारत की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि के कारण यह दुनिया के लिए आकर्षण का केन्द्र है और इसी वजह से इसे आध्यात्मिक गुरू या विश्व गुरू का दर्जा दिया गया है, जिसने दुनिया की सोच को एक नई दिशा दी है। हर त्यौहार के पीछे जीवन के गहरे सिद्धांत छिपे हैं, परन्तु समय के साथ लोग इनके आध्यात्मिक रहस्य को भूल गए और वह मात्र परम्पराएं बनकर रह गईं। टिकरापारा सेवाकेन्द्र में प्रतिदिन चल रहे ऑनलाइन सत्संग में सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी जी ने आज गणेश जी के विचित्र चित्र की अद्भूत कहानी सुनाई, विशेष गुण और शक्ति का प्रतीक हर अंग और अलंकरण के बारे में बताया और कैसे हम भी परमात्मा से संबंध जोड़कर उन गुणों व शक्तियों को अपने भीतर समाकर जीवन के विघ्नों पर विजय पा सकते हैं, इसकी भी जानकारी दी। सभी से यह अनुरोध भी किया कि यदि गणेश उत्सव को सार्थक बनाना है तो विसर्जन के साथ हमें गणेश जी की विशेषताओं को धारण करने का संकल्प भी लेना होगा।
दीदी ने गजधर गणपति के बड़े कान, चौड़ा माथा, छोटी आंखे, लंबी सूण्ड, छोटा मुंह, बड़ा पेट, एक दांत, चूहे की सवारी, उनके हाथों के अलंकार- कुल्हाड़ी, रस्सी, मोदक और वरद् हस्त के आध्यात्मिक रहस्यों को बताते हुए कहा कि उनका भव्य मस्तक बुद्धि की विशालता और विवेकशीलता का, बड़े कान उनके श्रवण का अर्थात् कम बोलने व अधिक सुनने का, छोटी आंख एकाग्रता का, एकदन्त बुराईयों को मिटाने व अच्छाइयों को धारण करने का, सूण्ड कार्यकुशलता व स्वयं को मोल्ड करने का प्रतीक है। जैसे हाथी को कुछ भी मिलता है तो वह महावत को समर्पित कर देता है उसी प्रकार हमें भी अपने जीवन के मान-सम्मान, सभी प्राप्तियों को परमात्मा को समर्पित कर मान की इच्छा से परे निर्मान भाव के साथ रहना चाहिए। बड़ा पेट समाने की शक्ति की प्रेरणा देता है कि हम परिवार में एक-दूसरे की बातों को सहन करें व समा लें। चूहे की सवारी अर्थात् विकारों पर विजय प्राप्त करने, कुल्हाड़ी का तात्पर्य सभी बंधनों को काटने से है अर्थात् आध्यात्मिकता को अपनाने में जो भी देह, पदार्थ, व्यक्ति, वैभव के विघ्न आते हैं उस पर जीत प्राप्त करना। रस्सी अनुशासन में रहने, लड्डू व मोदक मुदित भाव में रहने की प्रेरणा देता है।
इस अवसर पर गणेश जी के निमित्त बहनों ने मोदक बनाकर भोग लगाया। अंत में सभी बहनें देवा श्री गणेशा गीत पर तालियां बजाकर झूम उठे।

प्रति,
भ्राता सम्पादक महोदय,
दैनिक………………………..
बिलासपुर (छ.ग.)

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