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प्रतिदिन का सत्संग है परमशिक्षक की शिक्षा – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी

बिलासपुर, टिकरापाराः- शिक्षक ऐसी पदवी है जिसे सारी दुनिया सम्मान देती है। हमारे देश के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने शिक्षकों के सम्मान में शिक्षक दिवस मनाने के लिए अपना जन्मदिन समर्पित कर दिया। उनके द्वारा कहे गए शब्द कि ‘राष्ट्र का निर्माण क्लास रूम में होता है’ इसका अर्थ है कि एक शिक्षक अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले अपने सच्चे ज्ञान से एक राष्ट्र का निर्माण करता है। भारत में जैसे-जैसे शिक्षा का विकास हुआ, मनुष्य के जीवन की रौनक ही बदल गई। शिक्षक न हो तो पढ़ाए कौन? राह कौन दिखाए? चित्त के अंधकार को कौन दूर करे? परमशिक्षक परमात्मा शिवबाबा संगमयुग पर आकर अपनी अमूल्य शिक्षाओं से हमारे जीवन को आकार देकर हमारा स्वरूप बना रहे हैं और नवयुग निर्माण का कार्य कर रहे हैं। प्रतिदिन प्रवचन, सत्संग, गीता पाठ, ज्ञान मुरली के माध्यम से रोज-रोज हमें शिक्षा देते हैं, एक भी दिन मिस नहीं करते और दिव्य गुणों को हममें भरकर हमको लायक बना रहे हैं। हमारे न समझने पर भी हम पर प्यार ही लुटाते हैं। वे हमें सत्संग के रूप में एक आइना देते हैं जिससे हम अपनी बुराईयों को दूर कर सद्गुणों का श्रृंगार करते हैं। ये श्रेष्ठ कार्य परमात्मा के अतिरिक्त और कोई नहीं कर सकता। जीवन में शिक्षक के अतिरिक्त वक्त या परिस्थितियां भी हमें बहुत कुछ सिखाती हैं लेकिन शिक्षक हमें सिखाकर इम्तहान लेते हैं और वक्त या परिस्थितियां इम्तहान लेकर हमें सिखाते हैं।
उक्त बातें शनिवार शाम शिक्षक दिवस के अवसर पर ऑनलाइन संबोधित करते हुए टिकरापारा सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्र.कु. मंजू दीदी जी ने कही। आपने आज के समय में विशेष कर कक्षा पांच तक के शिक्षकों से अनुरोध करते हुए कहा कि बच्चों को केवल अच्छे अंक लाना ही न सिखाएं बल्कि उनके अंदर महान व्यक्ति बनने का भाव भी भरें क्योंकि इस उम्र तक बच्चों के चेतन मन में ज्यादा कुछ भरा नहीं होता और अवचेतन मन बहुत ही क्रियाशील होता है। केवल किताबी शिक्षा नहीं बल्कि शिक्षक का जीवन ही ऐसा हो जिससे बच्चे कुछ सीखें। इसके लिए शिक्षकों को प्रशिक्षण भी इसी तरह दिया जाय। बच्चों को महान बनाने के लिए क्रोध की नहीं अपितु सच्चे प्रेम की शक्ति चाहिए क्योंकि क्रोध से बच्चे डर जाते हैं और डर से उनके ब्रेन का विकास नहीं हो पाता। शिक्षकों को व्यसन आदि बुराईयों से मुक्त होना चाहिए, क्योंकि बच्चे अबोध नहीं होते वे सभी चीजें पकड़ते हैं। शिक्षक का कर्म ऐसा हो जो बच्चों के लिए श्रेष्ठ भावना उत्पन्न हो जाए ये भावना ही बच्चों की ग्रहण शक्ति बढ़ा देगी। उनका साहस बढ़ाने व प्रशंसा करने से उनकी बौद्धिक के साथ चारित्रिक, नैतिक व आध्यात्मिक विकास भी होता रहेगा। क्लास के अंत में दीदी ने मेडिटेशन की अनुभूति कराई और जीवन की हर प्राप्तियों के लिए उस परमशिक्षक परमपिता परमात्मा का धन्यवाद किया।
प्रति,
भ्राता सम्पादक महोदय,
दैनिक………………………..
बिलासपुर (छ.ग.)