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पिताश्री ब्रह्मा बाबा ने सहनशीलता व समर्पण भाव से सभी को आगे बढ़ाया – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी

सादर प्रकाशनार्थ
प्रेस विज्ञप्ति
पिताश्री ब्रह्मा बाबा ने सहनशीलता व समर्पण भाव से सभी को आगे बढ़ाया – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी
*टिकरापारा में ब्रह्माकुमारीज़ के साकार संस्थापक पिताश्री ब्रह्मा बाबा की 54वीं पुण्यतिथि मनाई गई।*
सभी को मौन साधना के लिए प्रेरित किया गया…
बिलासपुर टिकरापारा :- प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के संस्थापक पिताश्री ब्रह्मा बाबा की 54वीं पुण्यतिथि पर टिकरापारा सेवाकेन्द्र में आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें बड़ी संख्या में सेवाकेन्द्र से जुड़े साधकों ने उपस्थित होकर पिताश्रीजी को अपनी मौन श्रद्धांजलि दी। ब्रह्माकुमारी बहनों के द्वारा परमात्मा को भोग लगाया गया। सभी ने प्रातःकाल से ही अपनी दिनचर्या आत्म चिन्तन, परमात्म चिंतन व योग साधना में बिताई। शाम के सत्र में सभी ने माउण्ट आबू से लाइव जुड़कर प्रभु मिलन मनाया। चार धामों के रूप में सेवाकेन्द्र में पिताश्री की याद में बनाए गए शान्ति स्तम्भ, बाबा का कमरा, बाबा की कुटिया का हिस्ट्री हॉल का स्वरूप सजाया गया जहां सभी ने योग-ध्यान का अभ्यास किया।
इस अवसर पर पिताश्री के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए टिकरापारा सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्रह्मा कुमारी मंजू दीदी जी ने कहा कि परमात्मा शिव की प्रवेशता से पूर्व पिताश्री का नाम दादा लेखराज था और वे बहुत प्रतिष्ठित हीरे के व्यापारी थे लेकिन परमात्मा की प्रवेशता के बाद ब्रह्माकुमारी संस्था की स्थापना के लिए अपना सब कुछ समर्पण कर दिया और लोगों का जीवन पवित्र बनाने के कार्य में उन्हें बहुत अपमान सहन करना पड़ा। लेकिन उनका परमात्मा पर निश्चय और विल पॉवर इतनी दृढ़ थी कि रहमदिल बन सभी को क्षमा करते हुए संस्था के कार्यों को आगे बढ़ाया और भगवान की श्रीमत के अनुसार 18 जनवरी 1969 को संस्था की बागडोर ट्रस्ट बनाकर माताओं बहनों सौंप कर संपूर्णता को प्राप्त किया।
दीदी ने पिताश्री के कर्म रूपी 18 कदम बताते हुए प्रेरणा दी कि उनके अंदर सभी को अपने से ऊंचा बनाने की भावना थी, लौकिक भाव का त्याग कर अलौकिकता में परिवर्तन किया, सभी के स्नेही व सहयोगी रहे, फल की इच्छा से मुक्त उनका कर्म था। जैसा कर्म मैं करूंगा, मुझे देख सभी करेंगे…यह उनके जीवन का मुख्य स्लोगन था। उनका हर संकल्प विश्व कल्याण के प्रति था अर्थात् वे निरंतर योगी रहे। सभी को स्नेह दिया लेकिन किसी भी व्यक्ति या वैभव से लगावमुक्त रहे, उनके जीवन में रमणीकता व गम्भीरता का संतुलन था, गुणग्राही, निमित्त, निर्माणचित्त, त्यागी, तपस्वी, परोपकारी, आगे बढ़ाने में पहले आप व परिवर्तन में पहले मैं का भाव, सहज पुरूषार्थी आदि उनके जीवन की विशेषताएं रहीं जो सभी ब्रह्मा वत्सों को निरंतर प्रेरित करते रहता है।
दीदी ने जानकारी दी कि समस्त विश्व के 140 से अधिक देशों के सेवाकेन्द्रों में आज के दिन को विश्व शान्ति दिवस के रूप में मनाते हुए पिताश्री को श्रद्धान्जलि देंगे। विश्व में शान्ति और सद्भावना के लिए कार्यरत इस संस्था ने आज सारे संसार में अपनी एक अलग ही पहचान बनाई है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस संस्थान द्वारा सारे विश्व में की जा रही उल्लेखनीय सेवाओं को देखते हुए इसे यूनिसेफ तथा आर्थिक एवं सामाजिक परिषद में सलाहकार का दर्जा प्रदान किया है। साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1981 में विश्व शान्तिदूत पदक प्रदान कर भी सम्मानित किया है।