Rajrishi
भाग्य की लकीर खींचने का आधार है श्रेष्ठ विचार और कर्म – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी

बिलासपुर राज किशोर नगर :- त्याग के पीछे यही रहस्य है कि एक गुना त्याग का भाग्य कई गुना बन जाता है। श्रेष्ठ कर्म और सुंदर विचारों के द्वारा ही भाग्य का निर्माण होता है। कर्मों को श्रेष्ठ बनाने के लिए हमें एक गुण नहीं विभिन्न गुणों को धारण करना जरूरी है। उदाहरण के लिए हमने किसी बात को उस समय सहन तो कर लिया लेकिन समाया नहीं अर्थात् वह बात किसी दूसरे के सामने जाकर आलोचना के रूप में वर्णन कर दी तो हमारा भाग्य नहीं बनेगा।
उक्त बातें गुरूवार के सत्संग में ईष्वरीय महावाक्य सुनाते हुए ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी जी ने कही । आपने ब्रह्मामुख वंशावली ब्राह्मण के सच्चे होने की निशानी सुनाते हुए कहा कि सच्चा ब्राह्मण वह है जो सदा ही दूसरों के गुण को देखता है व धारण करता है। कई लोग दूसरों की कमी देखकर, अवगुण पहचान कर अपने को होषियार समझते हैं जबकि यह स्वयं के लिए नुकसानकारक है। अवगुण देखते-देखते, परिचिंतन करते वे अवगुण हमारे भीतर प्रवेष कर जाते हैं।
कर्म, विचार, गुणग्राही, त्याग और भाग्य जैसे विषयों पर उच्चारित परमात्म महावाक्यों पर आयोजित व्यवहारिक व सैद्धांतिक मूल्यांकन का आज अंतिम दिन रहा। इन परीक्षाओं में 19 वर्ष के युवा से लेकर 73 वर्षीय बुजुर्ग महिला बासंती दास, 69 वर्षीय छायारानी मित्रा, विद्युत विभाग के वरिष्ठ अभियन्ता भ्राता बी.एल. वर्मा जी, वरिष्ठ अधिवक्ता विजयेन्द्र सिंह सहित अन्य साधक शामिल रहे। इस आयोजन के लिए सभी बहुत उत्साहित रहे और ऑनलाइन जुड़े साधकों ने भी उमंग उत्साह के साथ परीक्षा दी।