Rajrishi
सतोगुण का अभिमान भी तमोगुण की ओर ले जाता है…. ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी

सादर प्रकाश नार्थ
प्रेस विज्ञप्ति
*सतोगुण का अभिमान भी तमोगुण की ओर ले जाता है…. ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी*
*आत्मिक सम्पत्ति कोई नहीं छिन सकता, इसे बढ़ाने का प्रयास करें….*
*स्थितप्रज्ञ व्यक्ति जागृत, स्वप्न व सुषुप्त तीनों स्थितियों में समान रहता है*
*रेलवे क्षेत्र के डीआईजी भवानी शंकर नाथ जी ने भी गीता का श्रवण किया …*
*शिव -अनुराग भवन, राज किशोर नगर में श्रीमद्भगवत गीता का तीसरा दिन*
बिलासपुर राज किशोर नगर :- ज्ञान चेतना में निहित है। ज्ञान के अनुभव से सातों गुणों की अनुभूति सहज होती है और सभी समस्याओं का समाधान भी कर सकते हैं। आज के समय में हमारा ज्यादा ध्यान भौतिकता की ओर है व्यक्ति, वैभव, वस्तु जो विनाशी हैं उस पर ज्यादा ध्यान है। हमारे जीवन का ज्यादातर समय चल-अचल संपत्ति बढ़ाने में ही चला जाता है जबकि यह संपत्ति विनाशी संपत्ति है। आत्मिक संपत्ति के स्त्रोत ज्ञान, प्रेम, सुख, शांति के सागर स्वयं परमपिता परमात्मा हैं। उनसे प्राप्त अविनाशी संपत्ति को कोई भी हमसे छीन नहीं सकता। यहां तक कि पांच तत्व भी इन्हें नष्ट नहीं कर सकते। क्योंकि पांच तत्वों के रचयिता भी भगवान अर्थात् भ – भूमि, ग – गगन, व – वायु, अ-अग्नि, न – नीर के भी मालिक हैं।
उक्त बातें ब्रह्माकुमारीज़, राज किशोर नगर में आयोजित “समस्याएं अनेक समाधान एक – श्रीमदभगवत गीता” कार्यक्रम के तीसरे दिन ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी जी ने कही।
दीदी ने बतलाया कि जिस प्रकार हमारे शरीर में पानी की कमी से हम पानी की डिमांड करते हैं उसी प्रकार ज़ब हमारे जीवन में प्रेम की कमी होती है तो हम आपस में एक दूसरे से प्रेम की अपेक्षा करने लगते हैं जबकि हम खुद ही किसी को प्रेम नहीं देते। स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों की तरह हम भी अपनी आत्मिक सम्पत्ति बढ़ाने का प्रयास करेंगे, मेडिटेशन व सकारात्मक चिंतन आदि विधियों से अपनी बैटरी स्वयं चार्ज करेंगे तब ही हम भी सभी को प्यार बाँट सकेंगे…और घर या कार्यक्षेत्र का वातावरण शक्तिशाली बनेगा। क्रोध है तो जीवन नरक है और प्रेम है तो जीवन स्वर्ग के समान है।
योगी के लिए अत्यधिक नींद या अल्प नींद व अल्प भोजन या अत्यधिक भोजन उपयुक्त नहीं। योगी की स्थिति तो जागृत, स्वप्न व सुषुप्त तीनों ही समान अवस्था होती है।
दीदी ने बतलाया कि गीता ज्ञान गृहस्थ छोड़ना नहीं बल्कि गृहस्थ की जिम्मेदारी निभाते विकारों से मुक्त रहने की प्रेरणा देता है। यही समत्व योग है। बुरा करने वालों के साथ अच्छा और अच्छा कर्म करने वालों के साथ बुरा क्यों? इन सभी प्रश्नों का उत्तर भगवान के द्वारा गीता में दिए कर्म सिद्धांत से जान जाते हैं…
प्रतिदिन की शुरुआत ब्रह्मा समान श्रेष्ठ संकल्पों की रचना से, और दिनचर्या में विष्णु जी समान विचारों की पालना और अंत में अर्थात् रात में कमजोरी या बुरे संकल्पों का विनाश से हो तो हम भगवान शिव की तरह सबके लिए कल्याणकारी बन सकते हैं।
अंत में सभी ने गीता माता की आरती की गई। बहनों माताओं ने रास किया। इस अवसर पर रेलवे क्षेत्र के डी आई जी भवानी शंकर नाथ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शरद बलहाल जी व अन्य गणमान्य नागरिकों ने गीता का श्रवण किया।