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गीता मे वर्णित ध्यान की विधि शरीर और मन दोनो को स्वस्थ रखने का साधन: ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी

*गीता मे वर्णित ध्यान की विधि शरीर और मन दोनो को स्वस्थ रखने का साधन: ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी*
बिलासपुर: शिव अनुराग भवन राजकिशोरनगर मे एडवांस कोर्स मे गीता के प्रसंगों को आगे बढाते कहा कि पांचवे अध्याय के 27-28 वे श्लोक मे आत्मा के भृकुटि के मध्य स्थित होने का वर्णन है जो आज साइंस के अनुसार पिट्यूटरी ग्लैंड और हाइपोथेलेमस के मध्य का स्थान है।
एक प्रसंग का उल्लेख करते दीदी ने कहा कि सफर के दौरान नन्हे बच्चों की चंचलता से परेशान अन्य यात्रियों ने पिता से बच्चों को सम्हालने अनुरोध किया तो पिता ने कहा कि मै स्वयं अपने को नही सम्हाल पा रहा हूँ क्योंकि मेरी पत्नी साथ छोड चुकी है और बच्चे अभी अन्जान है । सच्चाई पता चलते ही लोगों की वृत्ति बदल गई। दीदी ने कहा कि एक छोटा सच जब वृत्ति बदल सकती है तो परम सत्य परमात्मा को जानने से हमारे वृत्ति का परिवर्तन वर्तमान और भविष्य दोनों को क्यो बदल नही सकता?
दीदी ने कहा कि परमात्मा हमारे कार्यो के प्रभाव से मुक्त रहते है।परमात्मा, आत्मा और प्रकृति के आधार पर सृष्टि चक्र चलता है। दीदी ने कहा कि छठे अध्याय मे परमात्मा ने ध्यान की विधि विस्तार से चर्चा की है इससे स्पष्ट है भगवत् गीता हिंसक युद्ध की प्रेरणा नही देता।
आत्मा के मित्र और शत्रु होने के बारे मे गीता मे वर्णन है जब मन वश मे है तब आत्मा मित्र और जब मन परवश हो तो शत्रु होता है। गीता के अनुसार मनुष्य को अपने जीवन मे गंभीरता, रमणीकता ओर मूल्य तीनो का संतुलन होना चाहिए।