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कर्म और योग में संतुलन करने वाले ही कर्मयोगी कहलाते हैं -ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी

*कर्म और योग में संतुलन करने वाले ही कर्मयोगी कहलाते हैं -ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी*
बिलासपुर: आज मनुष्य स्वयं के सत्य स्वरूप को भूल चुका है। अनेक मत मतांतर और भी उलझा रहे है। ऐसे मे परमात्मा वह रहस्य खोलते है जिससे दुनिया अन्जान है । शिव अनुराग भवन राज किशोर नगर मे स्पष्ट करते हुए ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी ने कहा कि सभी मनुष्य आत्माओं रूपी सृष्टि का बीजरूप एक ही परमात्मा है सभी को पुनर्जन्म में आना ही है। मनुष्य आत्मा का हर जन्म मनुष्य के रूप मे ही होता है। यह बात अब साइंस द्वारा भी लगभग सवा तीन लाख से अधिक पास्ट लाइफ रिड्रेशल प्रयोग द्वारा प्रमाणित हो चुकी है। वैसे भी आज तक पुनर्जन्म की स्मृति मे किसी ने भी पिछला जन्म पशु-पक्षी के रूप मे लेने के अनुभव का वर्णन नही किया है।
पूर्व जन्मों के बातो को भूल जाने का नियम सुखद एवं आवश्यक है । जब धर्म शास्त्रो की रचना हुई तब महान विभूतियों को मनुष्यों के भविष्य मे अति हिंसक होने का पूर्वानुमान था इसलिए कण कण मे भगवान की अवधारणा को पक्का किया कि शायद भगवान के भय से पाप कर्मो से डरे। गरूढ पुराण का मूल भाव भी पाप आचरण के प्रति भय उत्पन्न करना हो सकता है। आज हम देख रहे है कि मनुष्य की हिंसक प्रवृत्ति मानवता की सभी सीमाओं को लांघ चुकी है। मनुष्यों की शारीरिक संरचना शाकाहार के लिये है जिसे सभी मनुष्यों को स्वीकार कर लेना चाहिए । परमात्मा यह भी कहते है कि बुद्धि(विवेक) सिर्फ मनुष्यों मे है, शेष प्राणियों मे वैसी नही इसलिए मनुष्य सभी प्राणियों मे श्रेष्ठ है। लेकिन पाप कर्मो की सजा मनुष्य योनि मे ही भुगतनी होती है।
छठे अध्याय के 13 वे श्लोक मे ध्यान के लिए शरीर स्थिर कर दृष्टि अग्र भाग मे एकाग्र करने की विधि बतायी है। साथ ही यह भी वर्णन है कि योग की स्थिति का अनुभव अधिक खाने वालो को, अति अल्प खाने वालो को, अधिक सोने वालों को और बहुत कम सोने वालों को नही होता। कर्म और योग के बैलेंस वाले ही निरंतर योगी कहलाते हैं ऐसे योगियों मे भी जो योगी निरंतर परमात्मा की याद मे रहते है वही परमात्मा को प्रिय है।