Connect with us
 

News

नए दैवीय संस्कारों की क्रान्ति है मकर संक्रान्ति – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी

सादर प्रकाषनार्थ
प्रेस विज्ञप्ति
नए दैवीय संस्कारों की क्रान्ति है मकर संक्रान्ति – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी
ब्रह्माकुमारीज़ बलौदा/Tikrapara/Rajkishore Nagar

में गुरूवार को मकर संक्रान्ति के निमित्त लगाया गया परमात्मा को भोग

आध्यात्मिक रहस्यों को जानकर मनाया गया पर्व

बिलासपुर टिकरापारा :- ब्रह्माकुमारीज के स्थानीय सेवाकेंद्र टिकरापारा एवं राजकिशोर नगर स्थित सेवाकेन्द्र में मकर संक्रांति के पावन अवसर पर इस कोरोना से सुरक्षा के लिए दो अलग-अलग सत्रों में व ऑनलाईन आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें कई भाई बहन शामिल हुए। इस अवसर पर मकर संक्रांति का आध्यात्मिक रहस्य बताया गया व परमात्मा को तिल के लड्डू व पुड़ाची वड़ी का भोग स्वीकार कराया गया।
टिकरापारा सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी जी ने पर्व के आध्यात्मिक महत्वों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संसार में आज तक अनेक क्रांतियाँ हुई, कभी सशस्त्र क्रांति, कभी हरित क्रांति, कभी श्वेत क्रांति आदि आदि। हर क्रांति के पीछे उद्देश्य परिवर्तन रहा है। इन क्रांतियों से आंशिक परिवर्तन तो हुआ, किन्तु सम्पूर्ण लाभ और सम्पूर्ण परिवर्तन को आज भी मनुष्य तरस रहा है । वह राह देख रहा है ऐसी क्रान्ति का जिसके द्वारा सम्पूर्ण परिवर्तन हो जाए । संक्रांति का त्योहार संगमयुग पर हुई उस महान क्रांति की यादगार में मनाया जाता है । सतयुग मेँ खुशी का आधार अभी का संस्कार परिवर्तन है, इस क्रांति के बाद सृष्टि पर कोई क्रांति नहीं हुई ।
अभी कलियुग का अंतिम समय चल रहा है, सारी मानवता दुखी-अशांत हैं, हर कोई परिवर्तन के इंतजार में हैं, सारी व्यवस्थाएं व मनुष्य की मनोदशा बिगड़़़ चुकी है। ऐसे समय में विश्व सृष्टिकर्ता परमात्मा शिव कलियुग, सतयुग के संधिकाल अर्थात संगमयुग पर ब्रह्मा के तन में आ चुके हैं। जिस प्रकार भक्ति में पुरुषोत्तम मास में दान-पुण्य आदि का महत्व होता है, उसी प्रकार पुरुषोत्तम संगमयुग, जिसमें ज्ञान स्नान करके बुराइयों का दान करने से, पुण्य का खाता जमा करने वाली हर आत्मा उत्तम पुरुष बन सकती है।
मकर संक्रांति की स्थूल परम्पराओं मे आध्यात्मिक रहस्य छुपे हुए हैं। इस दिन खिचड़ी और तिल का दान करते हैं, इसका भाव यह है कि मनुष्य के संस्कारों मेँ आसुरियता की मिलावट हो चुकी है, अर्थात उसके संस्कार खिचड़ी हो चुके हैं, जिन्हें परिवर्तन करके अब दिव्य संस्कार धारण करने हैं । इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक मनुष्य को ईर्ष्या-द्वेष आदि संस्कारों को छोडकर संस्कारों का मिलन इस प्रकार करना है, जिस प्रकार खिचड़ी मिलकर एक हो जाती है। परमात्मा की अभी आज्ञा है कि तिल समान अपनी सूक्ष्म से सूक्ष्म बुराइयों को भी हमें तिलांजलि देना है।
जैसे जब नयी फसल आती है तो सभी खुशियाँ मनाते हैं। इसी प्रकार बुराइयों का त्याग करने से वास्तविक और अविनाशी खुशी प्राप्त होती है । फसल कटाई का समय देशी मास के हिसाब से पौष महीने के अंतिम दिन तथा अंग्रेजी महीने के 12,13, 14 जनवरी को आता है। इस समय सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में जाता है। इसलिए इसे संक्रमण काल कहा जाता है, अर्थात एक दशा से दूसरी दशा में जाने का समय। यह संक्रमण काल उस महान संक्रमण काल का यादगार है जो कलियुग के अंत और सतयुग के आरंभ में घटता है। इस संक्रमण काल में ज्ञान सूर्य परमात्मा भी राशि बदलते हैं। वे परमधाम छोड़ कर इस पुरानी दुनिया में अवतरित होते हैं।
इस त्यौहार के विभिन्न क्रिया कलापों का आध्यात्मिक अर्थ बताया गया। ब्रह्म मुहूर्त में उठ स्नान, ज्ञान स्नान का यादगार है। तिल खाना, खिलाना, दान करने का भी रहस्य है कि छोटी चीज़ की तुलना तिल से की गयी है। आत्मा भी अति सूक्ष्म है अर्थात तिल आत्म स्वरूप में टिकने का यादगार है। पतंग उड़ाना – आत्मा हल्की हो तो उड़ने लगती है; देहभान वाला उड़ नहीं सकता है। जबकि आत्माभिमानी अपनी डोर भगवान को देकर तीनों लोकों की सैर कर सकता है। तिल के लड्डू खाना – तिल को अलग खाओ तो कड़वा महसूस होता है। अर्थात अकेले में भारीपन का अनुभव होता है। लड्डू एकता एवं मिठास का भी प्रतीक है। तिल का दान – दान देने से भाग्य बनता है। अतः वर्तमान संगंयुग में हमें परमात्मा को अपनी छोटी कमज़ोरी का भी दान देना है।
परंतु यादगार मनाने मात्र से मानव के विकारों को हटाया नहींं जा सका है । हर वर्ष यह त्यौहार मनाये जाने पर भी मानव हृदय की कल्मश में कोई कमी नहीं आयी । आज यह त्यौहार विशुद्ध भौतिक रूप धारण कर गया है और इस दिन किये जाने वाले अनुष्ठानों के आध्यात्मिक अर्थ को भुला दिया है । इस दिन संस्कार-परिवर्तन, संस्कार-परिशोधन, संस्कार-दिव्यिकरण जैसा न तो कोई कार्यक्रम होता है, न लोगों को जागृति दी जाती है और न ही संस्कारों की महानता की तरफ किसी को आकर्षित किया जाता है । यदि इस पर्व को आध्यात्मिक विधि द्वारा मनाए जाए तो न केवल हमें सच्चे सुख की प्राप्ति होगी बल्कि हम परमात्म दुआओं के भी अधिकारी बनेंगे ।
संस्कार परिवर्तन के लिए 3 बातों की आवश्यकता है। कमी कमजोरी को महसूस करना, उसको परिवर्तन करने की कार्यविधि तैयार करना व दृढ़ता के साथ उस परिवर्तन को कर्म में लाने का निरंतर अभ्यास करना ।
दीदी ने पर्व की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आज से नए वर्ष में कुछ नया करने का संकल्प लेते हुए दृढ़ता से पिता परमात्मा का नाम प्रत्यक्ष करने का लक्ष्य रखना है और आने वाली किसी भी परीक्षा से कभी भी न घबराते हुए सदैव आगे की और अग्रसर होने का पुरुषार्थ करना है ।