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brahmakumaris Tikrapara

भगवान से कभी न क्षय होने वाली प्राप्तियों का यादगार है अक्षय तृतीया

*संगमयुग संस्कार भरने का युग है, भोग लगाते समय सही विधि अपनाये: बीके मंजू*

*भगवान से कभी न क्षय होने वाली प्राप्तियों का यादगार है अक्षय तृतीया*

*जीते जी स्नेहपूर्वक व्यवहार श्राद्ध पितर खिलाने से सहज और श्रेष्ठ है*

 

बिलासपुर: शिव अनुराग भवन राजकिशोरनगर मे भोग की विधि एवं विधान पर प्रवचन चल रहा है। दीदी ने कहा कि सभी परंपराये इसी संगमयुग से शुरू होती है इसलिए संगमयुग संस्कार भरने का युग है। श्राद्ध, मृत्यु के अवसर पर ब्राह्मणों को भोजन कराने की परंपरा है। दीदी ने कहा कि आत्मा तो पुनर्जन्म ले चुकी होती है फिर भी सूक्ष्म शरीर लगभग एक वर्ष तक भासना लेकर तृप्ति का अनुभव करता है, संकल्पों को महसूस करता है।

दीदी ने कहा जीते जी अगर संबंधों मे कटुता है या यथाशक्ति न कर पाने का अफसोस है तो श्राद्ध खिलाकर पितरो को खुश करने का भाव होता है लेकिन जीते जी स्नेह सम्मान पूर्वक व्यवहार कर गलतियों पर क्षमा मांग लेना सहज और श्रेष्ठ है।

भोग बनाते समय शरीर की सफाई, किचन बरतन की सफाई, भोग पात्र की स्वच्छता, वातावरण की शांति इत्यादि का विशेष ध्यान रखा जाता है। परमात्म महावाक्य पर चिंतन करते दीदी ने कहा कि दैवीय स्वभाव वाले, अथक, रूचि से परमात्मा के कार्य मे सहयोग देने वाले को परमात्मा पसंद करते है।

अक्षय तृतीया अनेक अवसरों के यादगार के रूप मे मनाया जाता है। दीदी ने कहा कि इस दिन सतयुग, त्रेतायुग की शुरुआत हुई, महाभारत युद्ध समाप्त हुआ, लक्ष्मी नारायण परशुराम का जन्म, कुबेर को खजाना प्राप्त हुआ। दीदी ने कहा कि अक्षय का अर्थ है जिसका कभी क्षय न हो। यह सब परमात्मा से संगमयुग मे हम बच्चों को अविनाशी प्राप्ति का यादगार है।

ब्रह्माकुमारी संस्था मे प्रत्येक गुरूवार, परमात्म अवतरण, सेवाकेन्द्र के स्थापना दिवस, अठारह जनवरी, मकर संक्रांति, शिवरात्रि, होली, गुडीपडवा, गुलजार दादी अव्यक्त दिवस, जानकी दादी अव्यक्त दिवस, मम्मा डे, गुरूपूर्णिमा, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, श्राद्ध पक्ष, एडवांस पार्टियों के निमित्त, नवरात्रि, दशहरा, दीवाली, भाईदूज, नयेसाल इत्यादि प्रमुख एवं अन्य अवसरों पर भोग लगाया जाता है।