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brahmakumaris Tikrapara

निश्चय, प्रेम व विश्वास से ईश्वर बँधे हुए हैं- शशिप्रभाl

प्रेस विज्ञप्ति

सादर प्रकाशनार्थ:

*खुशी हर पल एडवांस शिविर का 13वां दिन l*

*निश्चय, प्रेम व विश्वास से ईश्वर बँधे हुए हैं- शशिप्रभा*

*व्रत अर्थात संकल्प करना*

*जीवन परिवर्तन के लिए सशक्त निर्णय लेना चाहिए*

*कर्म का फल अकाट्य हैं मिलता जरूर है*

*कर्म रूपी बीज कभी सड़ता नहीं*

बिलासपुर:- टिकरापारा , प्रभु दर्शन भवन के हार्मनी हॉल में खुशी हर पल राजयोग अनुभूति शिविर एडवांस कोर्स का 13 वां दिन सेवाकेंद्र संचालिका मंजू दीदी के सानिध्य में चल रहे शिविर को राजयोग शिक्षिका ब्रह्माकुमारी शशिप्रभा ने संबोधित करते हुए कहा कि

व्रत अर्थात दृढसंकल्प करना, इसलिए हमें अपने जीवन परिवर्तन के लिए कुछ सुदृढ़ और सशक्त निर्णय लेना चाहिए l आत्मा राजा की तरह मन को कंट्रोल करके परमधाम की स्थिति में जब स्थित होने का दृढ़ संकल्प लेते हैं और जितनी ज्यादा देर हम परमधाम की स्थिति में स्थित रहते हैं उससे हमारे विकर्म अविनाश होते हैं कई जन्मों में हमने जीवन की अनेक यात्राएं क्रॉस की है हम सभी के अनेक कार्मिक अकाउंट बने हुए हैं जो समय प्रति समय हमें बैलेंस करना पड़ता है l अतः हमें परमात्मा को परमधाम में स्थित होकर याद करने से अनंत शक्तियां भगवान से हम ले सकते हैंl

दूसरी बात जब हम महान आत्माओं से दृष्टि योग करते हैं, ब्रह्मा बाबा से भी हम दृष्टि लेते हैं तो कहा जाता है दृष्टि से सृष्टि परिवर्तन इस संसार में हम स्वयं का परिवर्तन करके ही संसार का परिवर्तन कर सकते हैं l

 

*निश्चय, प्रेम व विश्वास से ईश्वर बंधे हुए हैं-*

परमात्मा हम सभी बच्चों के निश्चय विश्वास और प्रेम से बंधे हुए हैं l निश्चय बुद्धि विजयंती l हमारे हृदय में परमात्मा के लिए वह प्रेम,विश्वास व निश्चय है तो उनकी मदद हमेंशा हमें मिलता है lउदाहरण स्वरूप में महाभारत के कृष्ण और अर्जुन के बीच की घटनाओं को जीवंत करते हुए समझाया l

 

*कर्म रूपी बीज़ कभी सड़ता नहीं है*

कर्म का बीज कभी सड़ता नहीं है वैसे तो खेतों में जो किसान बीज डालते हैं वह कभी सड़ सकता है लेकिन कर्म का बीज कभी भी सड़ता नहीं इसीलिए गीता में कहा गया है कि कर्म करो फल की चिंता नहीं करो क्योंकि कर्म का फल तो अकाट्य है वह मिलता ही है जब हम कई बार जाने अनजाने में कई कर्म कर देते हैं जो विकर्म के खाते में चला जाता है उसका फल हमें भोगना ही पड़ता है जिस प्रकार आग में पांव जानबूझकर डालो या अचानक आग में पांव पड़ जाए तो अग्नि जलाती ही है ठीक इसी प्रकार हमारे कर्म फल हमें भोगने ही पड़ते हैं l महाभारत के भीष्म पितामह का उदाहरण देते हुए समझाया कि उनके द्वारा भी तीन जन्म के पहले अनजाने में ही किसी प्रकार का कर्म हो गया उस कर्म की कितनी बड़ी उन्हें सजा भोगनी पड़ी गीता में कहा गया है कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन…. इसलिए हमें परमात्मा के साथ कर्म योगी बंद करके कर्म करना है जब हम इस तरह से कर्म करते हैं हमें जीवन में अनंत शक्तियों की प्राप्ति होती हैl